एक कटोरा दूध की चाह

अक्सर ऐसा देखने में आता है कि छोटे बच्चे किसी भी चीज़ को देखते हैं तो पीछे पड जाते हैं कि फलां चीज़ तो मुझे चाहिए ही| जैसे बाल- गोपाल अपनी माँ से कहते हैं– मैया मैं तो चंद खिलोना लैहों| यह बाल हठ कहलाता है| ध्रुव ने पिता की गोद माँगी थी, पर क्या हुआ माँ ने समझदारी से काम लिया, और उसे भगवान् के गोद की ओर प्रेरित किया, और उसने सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त किया| इसी बात पर मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है |

एक ऋषि पुत्र था| घर में गाय न थी, वह प्रति दिन देखता था कि उसके मित्र दूध पीते हैं, दूध की बनी तरह –तरह की मिठाइयाँ खाते हैं, तो उसका भी मन करता था कि उसे भी और बालकों की तरह दूध का कटोरा मिले| माँ अपनी ओर से तरह-तरह की कोशिशें करती जैसे- आटे में शक्कर घोलकर खिला देती,परन्तु वह ये सब समझने लगा| अब उसे समझान–बुझाने का भी कोई असर न होता| ज़िद पर अड़ गया कि मुझे तो मेरे घर में ये चीज़ चाहिए ही |
माँ के मुख से निकल गया कि तू शंकर भगवान् की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करले, हमारी दरिद्रता दूर हो जाएगी, तुझे कटोरे में दूध मिल सकता है| बच्चे स्वभाव से ही भोले होते हैं| माँ की बात को तो पत्थर की लकीर मानते हैं| बस यह बात मन में बैठ गई कि शंकर भगवान् को प्रसन्न करना है| घर से चला गया और जंगल में जाकर तपस्या करने लगा, वह देख चुका था कि माँ –पिता कैसे तपस्या करते हैं, और खाना पीना छोड़कर बैठ गया| कई दिन बीत गए| शंकरजी समाधि में थे, माँ पार्वती ने देखा कि शिवजी ने इस बालक की ओर ध्यान ही नहीं दिया, तो उन्हें समाधि से जगाया और कहा कि देखो तो वह छोटा सा बालक तुम्हारे लिए भूखा प्यासा बैठा हुआ है, तो शंकरजी ने कहा बच्चा कुछ चाह रहा है तुम्हीं पूछलो और देदो| उन्होंने ऐसा ही किया| माता के दर्शन मात्र से ही उसके विचारों में परिवर्तन आ गया|
बालक ने देखा की शंकर जी की जगह माताजी हैं तो उसने चरण स्पर्श किये, उनने पूछा बेटा क्या चाहते हो ? तो बोला –आया तो था अपनी गरीबी दूर करने ,और एक कटोरा दूध के लिए परन्तु तुम्हारे दर्शन से एक नयी चीज मुझे मिल गई| अब तो मेरी कोई इच्छा नहीं है| उनने कहा जब तू मेरे सामने आया है तो तुझे अवश्य कुछ तो दूंगी, बालक ने सोचा संसार में कितने ही गरीब पड़े हैं जिन्हें भर पेट भोजन भी नहीं मिलता तो आप ऐसा करें कि आप अन्नपूर्णा बनकर सब बच्चों की इच्छाएँ पूरी करें, संसार में कोई दु:खी न रहे | दर्शन का प्रभाव देखिये कि बालक की सकामता निष्कामता में बदल गई| उसने वरदान माँगा –मुझे दो वरदान चाहिए| एक तो आपके चरणों का प्रेम,
दूसरा सारे संसार पर कृपा |
माँ ने कहा तेरी तपस्या का फल तुझे मिल गया अब तू चाहे जितना दूध पी, चाहे जितनी वस्तुएं ले| तू जो चाहता है वह मिल जायेगा |
वह बोला अब मुझे अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए| हमें भी उस निर्मल मन वाले बालक की तरह निस्वार्थी बनकर जग कल्याण की कामना करनी है|

Contributor
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *