पाप का मूल

मैंने एक दिन देखा कि किसी ने भगवान् को गुड़ और चने का भोग लगाया था, उस गुड़ के डिगले पर एक मक्खी चिपकी हुई दिखाई दी, और मुझे वह दोहा याद
आ गया जो हम सबने कबीरदास जी द्वारा लिखी हुई पढ़ी, जो इस प्रकार है |
माखी गुड में गड़ी रहे पंख रह्यो लिपटाय, हाथ मले और सिर धुनें लालच बुरी बलाय||
मानव मन कितना fast भागता है वास्तव में सोचो तो बड़ा ही आश्चर्य होता है कि गुड़, उसपर मक्खी, उससे दोहा और उससे फिर दृष्टान्त, एक के बाद एक याद आते गए—एक ब्राह्मण कुमार थे,(वेद-शास्त्र) विद्याध्ययन के लिए काशी गए थे| इतना सब कुछ सीखने के बावज़ूद भी, व्यवहारिक ज्ञान की कमी के कारण कोई भी निष्कर्ष नहीं निकाल पाते थे| कोई भी पंडित ज्ञानी शंका समाधान न कर पाया| बडे ही उदास होकर, बाहर सड़क पर निकल पडे| कोठे पर से एक वेश्या ने उन्हें देखा,और बुलाने के लिए एक दासी को भेजा, इस पर ब्राह्मण ने कहा कि मैं पाप का मूल जानना चाहता हूँ, इसपर वह वेश्या से पूछने गई कि क्या आप इस प्रश्न का उत्तर दे पायेंगी? उससे हाँ सुनकर वह लौटकर गयी और बोली कि -वहां चलने पर आपको उत्तर मिल जायेगा|
वेश्या बोली कि आप कुछ दिन यहाँ ठहर जायें आपको पाप का मूल पता चल जायेगा |
ब्राह्मण को ठहरने के लिए एक अच्छे कमरे की व्यवस्था की गई ,वे अपना भोजन स्वयं ही बड़ी पवित्रता से बनाते खाते| एक दिन वेश्या ने आकर कहा कि आप क्यों परेशान होते हैं मैं ही नहा-धोकर खाना पकाकर खिला दिया करूंगी और साथ में दस स्वर्ण मुद्राएं भी दूँगी, यदि अनुमति हो तो कल सुबह से ऐसा करती हूँ|
ब्राह्मण ने सोचा कि यदि भोजन पवित्रता से नाहा धोकर बनाया जाय, तो खाने में तो कोई बुराई नहीं है और साथ ही यहाँ मुझे कोई पहचानता भी नहीं, किसी शिकायत का भी भय नहीं तो उनने स्वीकार कर लिया|
सुबह एकदम बढ़िया तरह-तरह के पकवान परोसे गए साथ ही दस स्वर्ण मुद्राएं रखी गयीं| भोजन स्वीकार करने के लिए आग्रह किया| जैसे ही उनने हाथ बढाया भोजन की ओर, उसने तुरंत थाली खींच ली, वे चौंक गए कि ये क्या?
वेश्या ने कहा ये आपके प्रश्न का उत्तर है| ब्राह्मण को समझते देर न लगी कि लोभ ही पाप का कारण है, स्वर्ण मुद्राओं के लोभ ने तो मुझे कितना बड़ा पाप करने के लिए प्रेरित कर दिया था|
वे वेश्या को प्रणाम कर वहां से चल दिए| उस सर्वशक्तिमान को हम जिस भी नाम रूप से पुकारते हों वे हमेशा हमें गलत कार्यों के करने से, मुसीबतों में फँसने से बचाते हैं, हमेशा हर जगह हमारी रक्षा करते हैं|

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