चैन की नींद कैसे सोयें

इस संसार का हर प्राणी प्रसन्नता, आनंद चाहता है| उसका सांसारिक जीवन और आतंरिक जीवन दोनों ही शान्त हों, तो ही वह आनंद की स्थिति में रह सकता है| बाह्य प्रसन्नता, पूरी तरह से आतंरिक प्रसन्नता पर निर्भर रहती है| किसी को कितनी ही बाह्य सुख सुविधाएं उपलब्ध हों, जैसे गाडी, बंगला आदि, लेकिन यदि उसके आतंरिक जीवन में तरह-तरह की आंधियां चल रही हों तो, वह क्षण भर के लिए भी सुख की साँस न ले पायेगा | इसके विपरीत यह भी देखा गया है कि एक नितांत गरीब उसका अपना घर भी नहीं, किराये का एक room वाला घर, उसी में kitchen ,bed room drawing room, कोई वाहन भी नहीं, जो देखे तो उसे ऐसा ही लगे कि हाय बेचारा, कैसे कष्टमय दिन काट रहा है और तो और उसका स्वास्थ्य भी अच्छा न रहता हो| परन्तु फिर भी वह बड़ा ही प्रसन्न दिखाई देता है| ऐसा लगता है मानो शांति का समुद्र हिलोरें ले रहा है , आनंद की वर्षा हो रही हो, शिकायत का एक शब्द भी उसके मुख से कभी सुना ही न होगा, और वह हर हाल में ईश्वर को धन्यवाद देता रहता है|
भेद की बात यह है कि ये जो बाह्य जगत की बातें हैं इन्हें अंतर जगत में न प्रवेश करने देना| जो ईश्वर द्वारा दी हुई नेमतें हैं उन्हें सम्हालकर रखना| इससे प्रकट में हर तरह दुखी दिखाई देते हुए भी प्रसन्न ,शांत और आनंदित रह सकते हैं|
जीव उस आनंद का स्वरुप नहीं जनता,इन्द्रियां उस आनंद को सांसारिक वस्तुओं में ढूंढती है, लेकिन यहाँ सुख प्राप्त होता है, जो हमारी इन्द्रियों को अच्छा लगता है ,वह सुख है | सुख और आनंद में बड़ा अंतर है |आनंद आत्मा का गुण है|
इसी बात पर आधारित एक दृष्टांत याद आ रहा है —- शीत ऋतु थी| भगवान् बुद्ध एक वृक्ष के नीचे सो रहे थे| प्रातःकाल की वेला थी| उस राज्य का राज कुमार भ्रमण पर निकला और देखा कि तथागत भूमि पर सो रहे हैं, उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ| प्रणाम करने के उपरांत उनने भगवान् बुद्ध से पूछा? —भगवन क्या आपको यहाँ निद्रा आ गयी? उन्होंने उत्तर दिया—हाँ! मैं बहुत गहरी नींद में सोया था|
राजकुमार ने पुनः आश्चर्य करते हुए पूछा—इस समय भीषण शीत ऋतु है, बर्फ से भी ठंडी हवाएं बह रही हैं| जिस वृक्ष के नीचे आप सो रहे हैं उसपर अधिक पत्ते भी नहीं हैं, भूमि पर पशुओं के खुरों से गड्ढे भी बन गए हैं, आपके नीचे पत्तों का बिछावन भी नहीं है और न आपके पास पर्याप्त वस्त्र ही हैं| फिर आपको अच्छी गहरी निद्रा कैसे आ गई?
भगवान् बुद्ध ने कहा —राजकुमार! एक राजा अपने महल में सोता है| सारी सुख सुविधाएं होती हैं| बहुत सुन्दर पलंग मोटे-मोटे कोमल गद्दे ,अच्छे अच्छे तकिये, कम्बल| लेकिन अंतर में विषय वासनाओं की आंधी चल रही होती है| भय, चिंता लालसा की अग्नि धधकती रहती है| विचारों में अंतर्द्वन्द्व के कारण अन्दर महा भारत का युद्ध चल रहा होता है| इतना सब होते हुए भी यदि वह निद्रा में जा सकता है तो
मेरे अन्दर तो कोई द्वंद्व ही नहीं ,कोई विषमता नहीं| इसलिए ये बाहरी विषमताएं मेरी निद्रा में कोई विघ्न नहीं डालती| मैं किसी भी परिस्थिति में गहरी निद्रा लेलेता हूँ |
उपरोक्त दृष्टांत यह बताता है कि अगर हमारा अंतर शांत हो तो किसी भी बाह्य परिस्थिति का हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा , हम हर परिस्थिति में खुश ही रहेंगे और चैन की नींद सो सकेंगे |

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