हम मानव तरह-तरह की व्याधियों से परेशान रहते हैं| व्याधि मतलब बीमारी इसका नाम सुनते ही लोग एकदम सोचने लगते हैं कि B.P. या SUGAR? ऐसी बीमारियों को ही बीमारी मानते हैं, लेकिन इससे बड़ी –बड़ी व्याधियां हमारे अन्दर छुपकर प्रवेश कर जाती हैं और हमें पता ही नहीं चल पाता है कि इनने कब entry लेली| इसका पता लगा पाना वास्तव में बहुत ही कठिन है, कई बार तो वे ऐसा विकराल रूप धारण कर लेते हैं, और हमें ज़रा सा भी आभास नहीं हो पाता| प्लीज घबराइये मत| इसके लिए कोई Tab या Injection नहीं लगेगा, इससे तो आपको आपका इष्ट जिसे आप सर्वशक्तिमान या गुरु कहकर बुला सकते हैं, वह ही उबार सकता है, और उन व्याधियों के नाम हैं काम, क्रोध, लोभ,मोह और अहंकार| शुरू की चार से तो फिर भी छुटकारा मिल सकता है,परन्तु ओह! यह अहंकार इससे तो पार पाना बड़ा ही कठिन है|
इसी बात पर मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है – प्राचीन काल की बात है| एक राजा थे, उनके दो पुत्र थे, राजा जब बूढ़े होने लगे तो आधा –आधा राज्य दोनों को दे दिया| दोनों के एक –एक पुत्र हुए, इन्हें शिक्षा के लिए गुरुकुल भेजा गया| खाण्डव ने कर्मकाण्ड सीखा तो पुष्पमित्र ने अध्यात्म विद्या सीखी| कर्मकांडी होने के कारण लोग उनकी आवभगत ज्यादा करते थे, इससे उनमे अहंकार हो गया और पुष्पमित्र से द्वेष करने लगा| अचानक एक दिन पुष्पमित्र पर धावा बोल दिया| पुष्पमित्र क्योंकि अध्यात्म का ज्ञाता था तो सबको सामान प्रेम करता था| इसका नतीज़ा यह हुआ कि सारी प्रजा ने जी-जान लगाकर खांडव को हरा दिया,परिणाम यह हुआ खाण्डव को कुछ मित्रों और मंत्रियों के साथ जंगल में जाकर रहना पड़ा|
कुछ वर्षों बाद पुष्पमित्र आखेट के लिए गए,उनकी आँखों के सामने ही एक सिंह ने एक गाय की हत्या कर दी और वह कुछ न कर सका, इस बात का वह प्रायश्चित्त करना चाहता था, क्योंकि प्रजा की रक्षा उसका धर्म है, और उसने मंत्रियों से सलाह माँगी| मंत्रियों ने कहा कि कर्मकाण्ड के बारे में तो आपका भाई खाण्डव ही बता सकता है|
अध्यात्म का ज्ञाता,निर्मल मनवाला पुष्पमित्र, एक दो आदमियों के साथ निहत्था ही खाण्डव से सलाह लेने चला गया| खाण्डव के आदमियों ने कहा कि यह निहत्था आ रहा है इसे हम क्यों न मार दें? पर खाण्डव ने मना कर दिया| पुष्पमित्र ने आकर खाण्डव के चरण स्पर्श किया और कहा कि मैं आपसे शंका समाधान करने आया हूँ, और सारी बात बता दी और इसका प्रायश्चित्त पूछा, उसने बता दिया कि ऐसा-ऐसा कर लो| उसने लौटकर वैसा ही किया परन्तु उसे याद आया कि अरे! मैंने दक्षिणा तो दी ही नहीं, वह दोबारा गया तो इस बार भी उसे यही सलाह मिली कि यह अकेला निहत्था है इसे मार दो पर इस बार भी वह न माना| पुष्पमित्र ने खाण्डव के चरण स्पर्श कर कहा कि आप दक्षिणा लेलें|
इस घटना से उसका मन उसके प्रभाव में आ गया| उसके अन्दर जो अहंकार और द्वेष भाव था वह गायब हो गया और बोला कि तुम मुझे अपनी अध्यात्म विद्या का दान देदो|
इसपर पुष्पमित्र ने कहा इसके लिए तो आपको राजधानी ले चलना पड़ेगा, दोनों साथ रहेंगे तभी यह विद्या आपको प्राप्त हो सकेगी, और दोनों लौट गए
यहाँ खास बात यह है कि अहंकार रूपी व्याधि खाण्डव को कब लग गई थी वह उसे पता ही नहीं चल पाया, और यही उसके सारे कष्टों का कारण बना| यह अहंकार बड़े ही सूक्ष्म रूप में प्रवेश कर जाता जाता है जिसे वह सर्वशक्तिमान ही दूर कर सकता है|