अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाना हमें आना चाहिए, न कि हम उससे दूर भागें| कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं कि हम जिस कार्य को कर रहे हैं उसमें हमें अरुचि सी हो जाती है, और हम सही निर्णय नहीं ले पाते कि हमें क्या करना चाहिए और हम रणक्षेत्र से भागकर वैराग्य लेने की बात सोच बैठते हैं| कई ऐसे लोग होते हैं, जो बिना सोचे समझे ही ऐसों का अंधानुकरण कर लेते हैं, जिसका परिणाम दूसरों को भुगतना पड़ता है| हमारे कारण यदि किसी को तकलीफ हो,और उसके जिम्मेदार हम हों तो,क्या हम खुद को ही माफ़ कर पायेंगे?तो क्या भगवान? कदापि नहीं|
इसी बात पर एक दृष्टांत याद आ रहा है—एक व्यक्ति था, उसने एक राजा के यहाँ नौकरी कर ली| वह बड़ा ही योग्य और वीर भी था, जिसे देख राजा ने उसे सेनाध्यक्ष पद पर पहुंचा दिया| उसने अनेक लडाइयां लड़ीं और जीता भी| रण भूमि पर पड़े हुए शवों को देखकर वह बड़ा ही दुखी हो गया और राजा से कहा अब मैं किसी जीव को भी न मारूंगा न सताऊँगा| इसपर राजा ने कहा कि आप अब न्यायाधीश के पद को सम्हालें| इसमें भी वह संतुष्ट नहीं हो पा रहा था, कारण यह कि लोग झूठी गवाही, झूठी कसमें खाते और निरपराधी को सजा मिल जाती,जो कि ठीक न था, मन बहुत दुखी हो जाता था, और उसने वैराग्य लेलिया सब छोड़कर, जंगल में एक कुटिया बनाकर रहने और तपस्या करने लगा|
बड़े विचित्र लोग! पता नहीं क्या देखा उस व्यक्ति में, भीड़ की भीड़ उमड़ पड़ती| उसके उपदेश से कई लोगों ने वैराग्य ले लिया| एक दिन,वह वहां से पास के गाँव चला गया|वहां भी भीड़ की कोई कमी न थी|
अचानक एक स्त्री गुस्से में आग-बबूला होती हुई पहुंची और जोर से उसका हाथ पकड़कर खींचकर अपने साथ अपनी झोपडी में ले गई| अपने बेटे के शव को दिखाकर बोली—अन्न के लिए तरस कर मेरे दो बेटे पहले ही मर चुके ये तीसरा है|
जानते हो इसका कारण तुम हो| तुम ढोंगी हो पापात्मा हो| वह व्यक्ति समझ ही नहीं पा रहा था की यह क्यों ऐसा कह रही है|
पूछने पर उस स्त्री ने बताया — मेरा पति कपडे बुनने का काम करता था,उसकी कमाई से हमारी गृहस्थी बहुत अच्छे से चल रही थी| आपके प्रवचनों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह एक दिन बिना कुछ बताये घर छोड़कर भाग गया और हमारी ऐसी स्थिति हो गई|
वह बोली— मैं परमात्मा के समक्ष तुम पर मेरे बच्चों की ह्त्या का आरोप लगाउंगी| बोलो! क्या तुम्हारे पास कोई सफाई देने के लिए है? क्या यही संन्यास है?
उस व्यक्ति को ऐसा लगा जैसे किसी ने झकझोड़ कर रख दिया हो, विवेक जाग्रत हुआ,अपनी भूल समझ में आयी|
उसने उस स्त्री से माफी माँगते हुए कहा कि मुझे माफ कर दो| मैने कभी सोचा ही नहीं कि लोग मेरा अनुकरण करेंगे, घर परिवार के लोगों को इस प्रकार निराश्रित छोड़ देंगे तो उनका क्या होगा?
वह स्त्री बोली —भगवान ने मनुष्य को कुछ जिम्मेदारियां दीं हैं,उन्हें अच्छी तरह से निभाना ही मनुष्य धर्म है,क्योंकि हमें दी गयी भूमिका को बखूबी निभाते देख परमात्मा प्रसन्न होते है| सारे प्राणियों को ईश्वर अंश समझकर निष्काम भाव से सेवा करें| उस व्यक्ति ने स्त्री से कहा- मैं तुम्हारा उपकार मानता हूँ| तुमने मुझे सत्य का दर्शन करा दिया |
उस व्यक्ति ने कुटिया छोड़ दी और मानव सेवा में लग गया, और उसे आश्वासन दिया कि तुम्हारा पति अवश्य लौट आएगा|