हम अपने जीवन में अक्सर देखते हैं कि हर प्राणी अपने खुद की देखभाल,भोजन की आपूर्ति कर ही लेता है| यहाँ तक कि छोटे-छोटे कीट पतंग भी अपना ध्यान खुद ही रख लेते हैं| अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य जिसके पास पूर्ण रूपेण विकसित मस्तिष्क है, जो दूसरे के लिए भी कुछ कर सकता है,परन्तु न करे तो,उन छोटे जीवों और मनुष्य में अंतर ही क्या रह जाएगा? अत: यह आवश्यक है कि हम अपने विचारों, कर्मों से यह कर दिखाएँ कि हम अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ हैं| इसी बात पर मुझे एक घटना याद आ रही है |
दो आदमी थे,जो एक साथ तीर्थ यात्रा के लिए निकले| उनमे से एक अमीर था अत: अधिक रूपये लेकर गया| दूसरा गरीब था, बड़े ही परिश्रम से रुपये इकठ्ठा किया था अत: उसके पास कम रुपये थे| मार्ग में एक दिन उन्हें रात्रि को कहीं ठहरने की जरूरत पडी| अँधेरा हो गया| वे रात्रि में रुकने के लिए स्थान ढूँढने लगे| उन्हें एक छोटा सा कच्चा मकान मिला, जिसमे किवाड़ की जगह पर्दा डला हुआ था, भीतर एक दिया जल रहा था, दोनों भीतर गए, उन्होंने देखा कि मालकिन बीमार है और चारपाई पर पडी कराह रही है, और छोटे-छोटे तीन बच्चे वहाँ रोटी के लिए रो रहे हैं | गरीब आदमी ने कहा –ऐसा करते हैं कि आज रात को यहीं रुक जाते हैं| धनी ने कहा – नहीं, मैं तो यहाँ रुक न सकूंगा, मैं किसी सराय या धर्मशाला में रुकूंगा जहां आराम मिले| वह तो चला गया,परन्तु गरीब वहीं रुक गया| सबसे पहले उसने अपना खाना खोला और बच्चों को बाँट दिया|फिर उस स्त्री से पूछा—तुम्हें क्या कष्ट है? वहा बोली—मैं विधवा हूँ, मेरे पास तीन बच्चे हैं| मैं प्रति दिन मजदूरी करके पेट पालती हूँ| परन्तु तीन दिन से बीमार हूँ| बच्चे भूख से तड़प रहे हैं और घर में कुछ भी खाने को नहीं है| यात्री बोला बहिन चिंता न करो, मैं तुम्हारी मदद करूंगा, थोडा खाना उसे भी दिया और सो गया|
सबेरे उठा, वैद्य को लाया फिर दवाइयां भी और साथ ही कुछ भोजन सामग्री भी ले आया| भोजन बना सबने पेट भर खाया| फिर वह बाज़ार जाकर बच्चो के कपडे और कई दिनों के लिए भोजन सामग्री भी ले आया| इस प्रकार सेवा करते हुए कई दिन बीत गए| अब रुपये भी सब खर्च हो गए, अत;लौटकर घर आ गया|
दूसरा साथी तीर्थ में पहुंचा, जहां दोनों को जाना था और मंदिर में दर्शन को पहुंचा|
उसने देखा कि उसका साथी सबसे आगे भगवान् की प्रतिमा के पास खडा है और दोनों हाथ ऊपर किये आनंद विभोर हो रहा था, उस जगह तक और कोई जा भी नहीं सकता था | मंदिर से निकलकर उसकी बहुत तलाश की परन्तु वह न मिला|
अंत में जब वह घर आया तो दोनों मिले| उस अमीर आदमी ने कहा—भाई तुम तो मुझसे पहले पहुँच गए , और वहां खड़े थे जहाँ कोई भी नहीं जा सकता था |
यह सुनकर उसके नेत्रों से अश्रु बह निकले|
बोला –मैं तो उस दुखिया के घर चार दिन रुककर चला आया | मेरे रुपये भी ख़त्म हो गए थे|
साथी बोला तुम्हारी यात्रा सफल हुई | उस दुखिया की सेवा से तुम्हें वह स्थान प्राप्त हुआ जो देवताओं को भी मिलाना कठिन है |मैं वह आनंद न पा सका|
अर्थात् हमें इस मानव शरीर को पाकर मानवता को बनाये रखना है | मानव धर्म निभाकर हम वह प्राप्त कर लेंगे जो तीर्थ स्थानों में पहुंचकर भी न मिल सके |
यही है सेवा का महत्व |