कभी-कभी किसी प्रकरण में ऐसे भी अवसर आते हैं जब Management सोच में पड जाता है और निर्णय लेना कठिन हो जाता है कि वास्तविक दोषी कौन है, जिसे दण्ड दिया जा सके। इसी बात पर आधारित एक कहानी में मैंने सुना । वह यह कि – एक बार एक प्रकरण में भगवान यम का Management सोच में पड गया कि पाप किस के खाते में लिखा जाये ! प्रकरण कुछ ऐसा था कि – एक नगर में एक सेठ रहते थे । सेठ बहुत धर्मिक प्रवृत्ति के थे । वे ब्राह्मणों का बडा ही सम्मान करते और उनको भोजन करवाते थे । एक बार एक ब्राह्मण उनके घर पर आया । सेठ ने उनकी सेवा की, चरण धोये और आग्रह किया कि भोजन ग्रहण करें। वह ब्राह्मण, सेठ जी के घर के खुले आंगन में बैठ कर भोजन कर रहे थे उसी समय एक चील पक्षी एक जहरीले सांप को अपने मुह में दबाये आकाश में उडते हुए जा रही थी । दुर्भाग्यवश उसकी उडान ब्राह्मण की भोजन थाली के ठीक ऊपर सीध मे थी और मरे हुए सर्प के मुख से टपकती हुई विष की बूंद ब्राह्मण की थाली में गिर गयी। किंतु इसका पता न तो ब्राह्मण को था न ही सेठ को । परिणाम यह हुआ कि भोजन समाप्त होते – होते ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी। नगर में सबको पता चल गया कि जो ब्राह्मण सेठ के घर पर भोजन कर रहा था, उसमें सर्प का विष था । किंतु ये प्रकरण केवल यहां की सजा का नहीं था क्यों कि ये मामला तो यमराज के कार्यालय का भी था कि पाप किसके खाते में लिखा जाये । प्रकरण की चर्चा में यमराज को पता चला कि इस प्रकरण में तीन प्राणी हैं पहला- सेठ, जिसे मालूम ही नहीं था कि ब्राह्मण के भोजन में सर्प के विष की बूंदे गिर गयी हैं । दूसरा- चील, जो जहरीले सर्प को लिये ब्राह्मण के ऊपर से उड कर गया । तीसरा- वह मरा हुआ सर्प था। किंतु यह निर्णय नहीं हो पाया कि पाप का भागीदार कौन है? आखिर यह प्रकरण बहुत दिनों तक अटका रहा।
कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण उस नगर को आये और उन्होने उस सेठ के घर का पता, नगर के चौपाल पर बैठे लोगों से पूछा । लोगों ने पता तो बतला दिया किंतु ब्राह्मणों से यह कहा कि आप लोग सावधान रहना क्योंकि सेठ आप जैसे ब्राह्मणों को भोजन में सर्प का विष मिलाकर मार डालता है। उनके इतना कहते ही यमराज ने चित्रगुप्त से कहा ब्राह्मण की मृत्यु का पाप इन लोगों के खाते में जायेगा। चित्रगुप्त ने पूछा कि प्रभु ! उस हत्या में इन लोगों का कोई हाथ नहीं था फिर पाप इनके खाते में क्यों? यमराज बोले चित्रगुप्त ! प्रत्येक पापी स्वयं की प्रसन्नता के लिये पाप करता है। किंतु इस प्रकरण में सेठ, ब्राह्मण और चील तीनों को प्रसन्न्ता नहीं मिली। किंतु चौपाल पर बैठे लोगो ने एक सदाचारी सेठ की निंदा इस घटना के माध्यम से की और पाप का वह भाग , दूसरों की निंदा करने वाले के खाते में ही डाला जाता है ।
कह सुनाउं कि कर दिखाउं भाग 1 और 2 से यह शिक्षा मिलती है कि – निज विकास या उन्नति के लिये हमें अपना अवलोकन करना होगा कि जिस दोष को हमने दूसरों में देखा वह कहीं मुझ में तो नहीं है? दूसरों के दोषों को देखकर और उनकी निंदा करके पाप कमाने से बेहतर होगा कि हम स्वयं के दोषों को जानें और उन्हें दूर कर स्वयं का पूर्ण विकास करें ।