स्वप्न देखकर हम कई बार बहुत परेशान हो जाते हैं कि इन दोनों में से सच क्या है? अब मैं जागते हुए जो देख रहा हूँ वह या इसके पहले स्वप्न में जो देख रहा था वह| बड़ा भारी confusion. उस स्थिति में कोई भी व्यक्ति बड़ी ही विचित्र मानसिक स्थिति में पड जाता है| ऐसी स्थिति एक बार राजा जनक के जीवन में भी आयी| इसी पर आधारित एक दृष्टांत मुझे याद आ रहा है|
एक समय की बात है जब महाराजा जनक सो रहे थे और वे स्वप्न में चले गए| वहां वे क्या देखते हैं कि किसी राजा ने उन पर चढ़ाई कर दी ,वे युद्ध में हार गये| वे अपना राज्य छोड़कर भागते ही जा रहे हैं, उन्हें एक प्रकार का भय भी सता रहा था कि कहीं उनका शत्रु पीछा तो नहीं कर रहा? एक तो tension दूसरा भागने के कारण थकावट ,भूख प्यास सब सताने लगे| ऐसा लगता था कि भूख के मारे प्राण न निकल जाएँ| ऐसी स्थिति में वे एक गाँव पहुंचे| वहां उनने देखा कि एक सेठ ने सदाव्रत खोला है और कई लोग भोजन के लिए कतार में खड़े हैं| परन्तु जब तक वे भोजन तक पहुँचते हैं, तो उस भोजन परोसने वाले व्यक्ति ने कहा कि भोजन तो ख़त्म हो गया| बर्तन में अब सिर्फ खुरचन ही बचा है, अगर चाहो तो दे दूं? राजा ने हामी भरदी क्योंकि प्राण निकले जा रहे थे| जैसे ही दोना हाथ में लेकर बाहर निकला तो इतने में एक चील ने आकर उस दोने पर झपट्टा मार दिया और बस वह दोना नीचे गिर गया| फिर क्या था जोर से चीख निकल गई| राजा की चीख सुनते ही सभी लोग दौड़े-दौड़े आ गए और पूछने लगे महाराज क्या हुआ? उनके मुख से सिर्फ एक ही वाक्य बार –बार निकल रहा था कि यह सच है या वह सच? कई दिनों तक वे इसी स्थिति में रहे|
जैसे ही महाराजा जनक के गुरूजी को यह खबर मिली वे उनके दरबार में पहुंचे, तब राजा का यही प्रश्न था| इसपर उनके गुरु जी ने कहा कि
स्वप्न को तुम देख रहे थे, अर्थात् तुम दृष्टा थे| जो हो रहा था उसे तुम देख रहे थे|
इसी प्रकार जाग्रत में भी जो हो रहा है उसे भी दृष्टा बनकर, सिर्फ देखो| सुख का असली राज यही है| जाग्रत व स्वप्न में दृष्टा याने दोनों ही स्थिति में observor बने रहो | उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया,इसीलिये वे विदेह कहलाये |