जो विश्वास छोटे बच्चों में अपने माता-पिता पर होता है ऐसा विश्वास लाना आसान बात है ही नहीं परन्तु हरेक यह विश्वास दिलाता है-–आप मानिए तो सही मुझे आप पर पूरा भरोसा है| यदि परीक्षा ले ली जाय तो शिष्यों की भीड़ में से कोई एक-आध शिष्य ही सफल हो पाता है| ऐसे तो कई उदाहरण हैं – एक बार गुरुनानक देव जी कई शिष्यों के साथ नदी के किनारे बैठे थे और किसी ने आकर कहा अरे आपने तो कई शिष्य बना रखे| उन्होंने कहा —इनमे से कोई एक –आध ही असली शिष्य होगा जिसे मुझपर पूरा भरोसा हो और उन्होंने एक परीक्षा रखी| कहा नदी में काफी दूरी से एक शव तैरता हुआ आ रहा है,आपलोगों को वहां पहुंचकर उसे खाते हुए लौटकर आना है| एक छात्र को छोड़ बाकी सब की गर्दन नीची हो गई, वे सब सोचने लगे कि इन्हें क्या हो गया कैसी बातें कर रहे हैं ये आज? परन्तु अंगद देवजी ऐसे थे जिन्हें अपने गुरु के शब्दों पर पूरा भरोसा था और वे पानी में कूद गए, वहां पहुंचकर क्या देखते हैं कि वह तो शव नहीं कडा प्रसाद (हलुआ) है| वह प्रसाद खाते हुए लौट आए |
मुझे इस बातपर एक ऐसा दृष्टांत याद आ रहा है जो एकदम विश्वास की पराकाष्ठा है| ऐसा विश्वास ही शत प्रतिशत का विश्वास कहलाता है|
एक बार की बात है—एक शिष्य अपने गुरु के साथ एक घने जंगल से गुजर रहा था| चलते-चलते अँधेरा छा गया| गुरु ने कहा आज यहीं इस वृक्ष के नीचे रात व्यतीत कर लेंगे| उस स्थान पर शिष्य ने बिस्तर बिछा दिया और गुरूजी से प्रार्थना की कि आप विश्राम करें और मैं यहाँ रखवाली करूंगा| वे गुरु एकनाथजी थे बोले–आज रात हम पहरा देंगे और तुम सो जाओ| ये मेरी आज्ञा है अतः अनिच्छा से ही उसे सोना पड़ा| वह थका हुआ तो था ही नींद लग गई|
रात्रि का एक पहर बीता होगा कि उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी परछाई ने उसे ढक लिया हो, और उसकी गर्म श्वासों के स्पर्श से वह जाग गया और आँखें खोली, तो जिस दृश्य को देखा वह बड़ा ही चौंकानेवाला था|
गुरु हाथ में खंजर लिए हुए उसकी छाती पर झुके हुए थे, परन्तु विशेष बात यह है कि शिष्य के हृदय में कोई चिंता भय या शंका न थी, देखकर भी आँखें बंद कर लीं| पूर्ण समर्पण | न कोई संकल्प न विकल्प| सिर्फ एक ही भाव ‘गुरु जो करते हैं शुभ ही करते हैं’|
पल-भर में गले में खंजर चुभा, दर्द हुआ क्योंकि नस कटी, खून बहने का एहसास भी हुआ, परन्तु बिना परवाह किये सो गया|
सुबह एकनाथजी ने पूछा—गले पर मलहम लगी पता नहीं चला? शिष्य ने कहा – जी पता चला| गुरु ने प्रश्न किया –क्यों पूछोगे नहीं कि कब और क्यों मलहम लगी?
शिष्य का उत्तर था — जो भी हुआ आपके पहरे और छत्रछाया में हुआ, पूछने का अधिकार मेरे पास नहीं है|
कल रात जो घटना घटी उसके बारे में तू जानना नहीं चाहेगा? शिष्य ने कहा- यह तन-मन सब आपका है फिर मैं क्यों पूछूं|
यह सुनकर गुरु प्रसन्न हुए और मौज में आने पर कहने लगे—एक सांप तुझसे एक प्याले खून का कर्ज़दार था, वह क़र्ज़ लेने आया था| तुझे डसकर खून चूसना चाहता था, परन्तु मुझे पहरे में देख, प्रार्थना करने लगा—आप कर्म विधान में दखल न डाले| गुरु बोले मैं ऐसा होने न दूंगा|
तुझे इसका खून चाहिए वह तुझे मिल जाएगा, कर्ज पट जायेगा,संस्कार कट जायेगा,यह जीवित रह जायेगा| सांप राजी हो गया| हमने तेरे कंठ की धमनी काटकर उसे रक्त दे दिया|
शिष्य ने शत-प्रतिशत विश्वास किया और ऐसा फल पाया|