विनय

हमने कक्षा छ: में एक श्लोक पढा था “ विद्या ददाति विनयं” ……. भावार्थ यह है कि – विद्या प्राप्त करने पर हमें ज्ञान प्राप्त होता है, जिससे नम्रता, सुशीलता, शिष्टता  जैसे अच्छे गुण  हम में आ जाते हैं । एक विनयशील या नम्र व्यक्ति ही सबका सम्मान कर सकता है। पूर्व काल में विद्या या ज्ञान पाना सहज नहीं था इस कारण हमारे पूर्वजों ने यह प्रयास  किया कि बिना विशेष ज्ञान पाये ही हम संस्कारों से ही विनयशील बन सकें । जैसे माता- पिता का सम्मान, गुरु का सम्मान, यहां तक कि पृथवी, वृक्षों नदियों पशुओं में गाय, इन सब को मां कह कर सम्मान देते हैं । उनका प्रयास यह था कि हम यहां से शुरू करके, प्रत्येक जीव का सम्मान कर सकें । और हम देखते है कि एक सच्चा विनयशील और नम्र व्यक्ति पूरे संसार में आदर पाता है। और इसके विपरीत जब हम किसी का अपमान करते हैं तो हमें उसका भी दण्ड हमें किसी न किसी रूप में मिलता ही है। इस बात से सम्बंधित अकबर –बीरबल की एक कहानी मुझे याद आ गयी । एक बार अकबर और बीरबल दोनों टहलने निकले, रास्ते में एक तुलसी के पौधे को देख बीरबल ने प्रणाम किया । अकबर ने पूछा कि इस पौधे को प्रणाम क्यों  किया ? बीरबल ने कहा ये तो तुलसी माता है। अकबर कुछ क्रोधित होकर बोले- तुम कभी पौधे को माता कहते तो कभी  नदी को , आखिर तुम्हारी कितनी मां   हैं ? बीरबल ने कुछ नहीं कहा और आगे बढे । बीरबल ने पुन: एक पौधे को प्रणाम किया। अकबर ने पुन: पूछा कि ये तुम्हारी कौन सी मां है ? बीरबल ने कहा – हुज़ूर ये मां नहीं बाप है । ये पौधा, तत्काल ही बहुत अधिक खुजली पैदा करने वाला पौधा था । किंतु बीरबल का जवाब सुनकर बादशाह को बहुत गुस्सा आया और उन्होने उस पौधे को उखाड कर फेंक दिया । किंतु तत्काल ही बादशाह खुजली से परेशान हो गये । पूरा शरीर लाल होने लगा। अकबर ने पूछा –बीरबल ये क्या हो गया मुझे ? बीरबल ने कहा हुज़ूर ये बिच्छूपत्ती का पौधा है। इसके पास जाने पर ही शरीर में खुजली होने लगती है इस कारण ही मै इसे बाप कहता हूं और फिर आपने तो इसे छू लिया । बादशाह बोले – बीरबल गल्ती तो हो गयी पर जल्दी ही उपाय बताओ जिससे इस भयंकर खुजली से निजात पा सकूं । बीरबल बोले – हुज़ूर फिर एक मां की शरण में ही जाना पडेगा । पास में ही एक गाय   थी । बीरबल ने विनय पूर्वक प्रणाम कर गोबर देने के लिये विनती किया । और फिर गोबर लेकर बादशाह के पूरे शरीर में उसका मालिश किया । फिर एक जलाशय में स्नान कर इस पीडा से मुक्त हुए।

अत: संसार में  जड वस्तु हो या सजीव हमें सब का ह्रदय से सम्मान करना चाहिये । हमारी विनयशीलता ही हमारे अच्छे संस्कारों का द्योतक है। और इस एक विनयशीलता के बदले में हमें सबसे प्रेम मिलता है और सभी हमें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।

Contributor
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *