निज विकास की बाधा

हम अक्सर किसी भी बाबा – बैरागी की सिद्धियों और करामात देखकर उससे आकर्शित हो जाते हैं कभी- कभी तो हम उसके भक्त भी बन जाते हैं । हम ये सोचते हैं कि यह शक्ति उसने सन्यास लेकर प्राप्त की है और यह हम जैसे परिवार वालों के बस की बात नहीं। कुछ हद तक ये ठीक भी है । क्यों कि जो बेचारा संसार को छोडकर भी फिर संसारियों को आकर्शित कर उनसे सम्बंध बनाने के लिये करमात दिखा रहा हो तो ऐसी शक्तियां हमारे किस काम की ?  फिर एक कहावत भी है कि “जिस गांव जाना नहीं तो उसकी गली का पता क्यों लगायें ?” अत: पहले हमें ये जानना जरूरी है कि वर्तमान परिस्थितियों में हमारी आवश्यकतायें क्या है ? तब उन आवश्यकताओं की पूर्ति जिन शक्तियों को पाकर ही सम्भव है, उसके लिये तपस्या करें । यहां अनेक शक्तियां हैं । जैसे तन की शक्ति, मन की शक्ति, धन की शक्ति, पद की शक्ति बुद्धि की शक्ति । वास्तव में हमें एक खुशहाल जीवन जीने के लिये यही शक्तियां चाहिये। किंतु ये शक्तियां भी वही पाता है जिसने तप किया। तप का अर्थ आग जलाकर स्वयं को तपाना नहीं होता बल्कि अभीष्ट प्राप्ति की दिशा में की गयी कडी मेहनत को तप कहते हैं । हमारी मेहनत की दिशा ठीक नहीं हो तो परिणाम भी जैसा हम चाहते हैं पा नहीं सकते । जैसे हम मंत्र का जप करके IAS,IPS नहीं बन सकते । हां ध्यान, पूजा, मंत्र का जप हमारी मानसिक और बौद्धिक शक्ति बढाता है जो जीवन में बहुत जरूरी है । किंतु यदि तन कमजोर हो तो हम कुछ भी परिश्रम करने में असमर्थ होंगे । इसलिये नियमित व्यायाम से हमें शारिरिक शक्ति प्राप्त होगी। इस तरह विवेकपूर्ण दृष्टि से वो शक्तियां अर्जित करनी है जिससे हमारा सर्वांगीण विकास हो । एक सर्वांगीण विकासित व्यक्ति ही स्वयं को परिवार को समाज को खुश रख सकता है। वास्तव में यही उन्नति है । जीवन मे यह जानना आवश्यक है कि संसार में बिना परिश्रम के कुछ भी प्राप्त नहीं होता । कम मेहनत कर, अधिक पाने की लालसा ही हमें चमत्कारों के भंवर जाल में फंसाती है जो उन्नति और विकास की बाधक हैं ।

 

Contributor
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *