सत्य स्वरुप है वह सर्वशक्तिमान,अर्थात् सत्य ईश्वरीय गुण है | जब उसका रूप ही सत्य है तो जिसने उसे धारण कर लिया तो सत्य के साथ रहने वाले सारे गुण, उस व्यक्ति में मौजूद होंगे| सत्य ग्राही जो होगा वह दयावान हो सकता है , किसी को हिंसा पहुंचाना तो दूर की बात है, वह हिंसा के बारे में सोच भी नहीं सकता| क्या सत्य पर चलने वाला चोरी की बात, या फिर किसी की वस्तु को हथियाने की सोच भी सकता है ? अपने हाथों किसी का अहित? ये सब असंभव ही हैं| न्याय ,दया, संतोष ये गुण तो उसके मन में ही निवास करते हैं|
इसी लिए यह कहा गया है कि सत्य सबकी जननी है | सत्य कल्याणकारी और सुन्दर है| यही कारण है कि सत्य स्वरुप सर्वेश्वर को सत्यम शिवम् सुन्दरम कहते हैं| सत्य ईश्वरीय गुण होने के कारण सत्यग्राही को ये गुण छोड़ नहीं सकते| इसी बात पर मुझे एक कहानी याद आ रही है जो मैंने अपने ताऊ जी से सुनी थी |
एक राजा ने अपने यहाँ एक बाज़ार लगवाया और ये घोषणा करवादी कि यदि किसी व्यापारी की कोई वस्तु न बिके तो राजा उस वस्तु की पूरी कीमत देकर खरीद लेगा| हाट लगने लगी| बिक्री भी अच्छी हो रही थी| कुछ दिनों बाद एक लोहार एक लोहे की छोटी सी मूर्ति बनाकर लाया, और हाट में रखदी| ग्राहक आये और पूछा कि ये किसकी मूर्ति है? लोहार बोला यह शनिश्चर देव की है| पूछा इसका मूल्य क्या है? कहा पाँच सहस्र मुद्राएं| इसके गुण क्या हैं ? यह जिसके घर जायेगी वहां से धन ,लक्ष्मी, यश, वैभव, सुख, सब चला जाएगा| लोग इस बात को सुनते और हाथ जोड़कर चले जाते| भला पाँच हज़ार मुद्राएँ देकर यह मुसीबत कौन मोल लेता? राज्य का कोषाध्यक्ष, और एक कर्मचारी देखने के लिए आये कि जो वस्तु न बिकी हो उसकी कीमत चुकाकर, उसे ले जाकर राजा को देदें| जब वह इस मूर्ति के पास पहुंचा ,और मूल्य और गुण पूछे तो उसने बताया कि पाँच हज़ार मुद्राएँ और इसके लेने वाले को सम्पूर्ण दुःख,अपयश, रोग, भय आदि मिलेंगे| वह राजा के पास गया और सारी बात बता दी|
राजा सत्याग्राही था,कहा– मुँह- माँगी कीमत देकर शनिश्चर की मूर्ति ले आओ|
मूर्ति राज महल में रख दी गई | रात को राजा ने स्वप्न में देखा कि प्रथम लक्ष्मीजी आयीं और बोलीं कि तुम शनिश्चर की मूर्ति ले आये इसलिए मैं जा रही हूँ,मैं यहाँ नहीं ठहर सकती| राजा ने नमस्कार किया और कहा ठीक है| फिर यश, वैभव, सुख और धर्म भी आये और यही कहकर बिदा हो गए जो लक्ष्मी जी ने कहा| अंत में सत्य आये| राजा ने पूछा अरे आप क्यों जाते हैं? जहाँ शनि का वास हो वहां मैं नहीं ठहर सकता|
राजा ने कहा- आप तो नहीं जा सकते| मैंने तो आपको रखने के लिए ही शनिश्चर देव की मूर्ति खरीदी| मैंने सत्य का पालन किया| आप मुझे कैसे त्याग सकते हैं| सत्य निरुत्तर हो गए और राज महल से न जा सके| उनके न जाने पर धर्म,यश, लक्ष्मी,वैभव सब लौट आये|
इसलिए सत्य को पकडे रहें तो धर्म,यश,लक्ष्मी,वैभव ये सभी हमेशा आपके साथ ही रहेंगे|