मेरे विचार से यहाँ न कोई छोटा, न कोई बड़ा, उस सर्वशक्तिमान की संतान की हैसियत से, हम सब एक सामान हैं| बड़ा पदाधिकारी होने के कारण या धनवान होने के कारण, कोई सेवा लेने की क्षमता रखता है, तो कोई धनाभाव के कारण सेवा करने के लिए मजबूर होता है| बस अंतर सिर्फ इतना ही है|
इसके अलावा कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि जिसे हम कमज़ोर और गरीब समझते हैं, वास्तव में वह तो आत्मिक स्थिति के हिसाब से बड़े-बड़े अमीरों से भी अमीर होता है, क्योंकि उसके पास जो आत्मिक शक्ति है वह किसी अमीर के पास भी न होगी|
हम इन चीज़ों को अपनी इन साधारण आँखों से न देख पाते हैं, न समझ ही पाते हैं| इसी कारण हम उन गरीब सेवकों से पशुवत व्यवहार करते हैं| उन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोतना चाहते हैं| उन्हें चौबीसों घंटे घर पर रखकर अपने इष्ट को याद करने का समय भी देना नहीं चाहते| इसी बात पर मुझे एक दृष्टान्त याद आ रहा है—
एक बुल्ला साहब थे| आरम्भ में एक जमींदार गुलाल साहब के यहाँ नौकरी करते थे| वे वहां गुलाम साहब का हल चलाया करते थे| पर जब उनका हृदय उस सर्वशक्तिमान की तरफ उमड़ता तो काम धंधा छोड़कर ध्यान में बैठ जाते थे| एक दिन ऐसे ही अचानक खेत जोत रहे थे कि प्रेम भाव उमड़ पडा, हल चलाना छोड़कर ध्यान में बैठ गए| संयोग से उसी समय वहाँ जमींदार पहुँच गए| देखा कि बैल कहीं हल में जुते खड़े हैं, और वे बुल्ला साहब, उनकी नज़र में तो एक नौकर ही थे, बैठकर ऊंघ रहे थे| गुलाल साहब को क्या पता कि वे ऊंघ नहीं रहे बल्कि ध्यान मग्न हैं| हलवाहे की लापरवाही पर क्रोधित हुए और बुल्ला साहब को एक लात मार दी,जिससे वे एकदम हिल गए और दही छलककर नीचे गिर गई| गुलाल साहब हैरान हो गए कि इसके हाथ तो खाली थे, फिर ये दही कैसे गिरी? वे एक बार बुल्ला साहब को देखते और एक बार, ज़मीन पर पड़ी दही को देखते|
इसी समय बुल्ला साहब ने आँखें खोलीं और देखा, अरे गुलाल साहब सामने खड़े हैं, देखकर खड़े होकर क्षमा माँगी, और कहा मैं ध्यान में था, और देख रहा था कि साधू संत पंक्तियों में बैठे हुए हैं, और मैं उन्हें दही परोस रहा हूँ, और इतने में मुझे आपने हिला दिया| मेरे हाथ से दही छलक कर नीचे गिर गई| हलवाहे की इतनी ऊँची स्थिति देखकर ज़मींदार की आँखें खुली की खुली रह गईं| उनके सोये हुए संस्कार जाग गए| ज़मींदार साहब ने बुल्ला साहब के चरण पकड़ लिए, अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी, और उनके शिष्य बन गए| उनका जीवन ही बदल गया| इस दृष्टांत से यह पता चलता है कि हमें किसी को भी कम नहीं आंकना चाहिए|