पहले कर्तव्य फिर हक की बात करें

अक्सर यह देखने में आता है कि लोग ये भूल जाते हैं कि पहले हमें अपना कर्त्तव्य पूरा करना है, अधिकार और हक की बात तो बाद में आती है| इसी बात पर मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है|
एक गाँव में एक मालगुजार था| उसके कई business थे| अनाज का भी अच्छा व्यापार चल रहा था|
अक्सर उसे लगता था कि कोई ईमानदार partner मिल जाये तो कुछ percentage उसे देकर अपने व्यापार को बरकरार रखूँ, पूरा काम अकेला नहीं सम्हाल पा रहा हूँ|
एक दिन अचानक जब वह शहर में था तब एक स्वस्थ, हट्टा–कट्टा व्यक्ति आकर भीख मांगने लगा| उसने पूछा—भई क्या बात है? हाथपांव सही सलामत हैं फिर भीख क्यों मांगते हो? शर्म नहीं आती? वह बोला – क्या करूं मजबूर हूँ कोई काम ही नहीं मिलता| कोई काम दे दे तो बड़ी ईमानदारी से करूं, १२ वीं पास हूँ| तो उस व्यक्ति ने मन ही मन सोचा कि अच्छा इंसान लगता है पूछकर देखता हूँ और पूछ ही लिया कि मेरे साथ business करोगे? भिखारी ने पूछा—क्या आप सच कह रहे हैं? मैं तो तैयार हूँ| व्यक्ति ने कहा यहाँ मेरा अनाज का धंधा चलता है| तुम्हें उसे एक जगह से लाना और बाज़ार में supply करना है| हर महीने के अंत में हम मिले लाभ को बाँट लेंगे| ये बात सुनकर भिखारी का कंठ अवरुद्ध सा हो गया, मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे, खुशी का ठिकाना न था और सोचने लगा कि इनके एहसान को कैसे चुकाऊंगा? फिर अचानक पूछ बैठा परसेंटेज का क्या हिसाब रहेगा? भिखारी तो सोच रहा था १० या २० % मुझे देगा और ८० -९० % खुद रखेगा, परन्तु धनिक ने इसके ठीक विपरीत बात कही| यह कार्य काफी समय तक बड़ी ही ईमानदारी से चलता रहा| इस भिखारी ने काफी तरक्की कर ली|
अचानक एक दिन भिखारी को एक दुर्विचार आया कि दिन-रात सारी मेहनत तो मैं करता हूँ फिर इसे बिना किसी मेहनत के पैसे क्यों दूं? जब धनिक पैसा मांगने आये तो कोई न कोई बहाना करके बिना पैसे दिए ही लौटा देता| इस पर धनिक ने कहा– मुझे पता है कि तुम्हें कितना लाभ हो रहा है! फिर देने में क्यों कतरा रहे हो? वह बोला तुम इसके हक़दार नहीं हो, ये पैसे लेने का तो तुम्हें कोई अधिकार ही नहीं| अमीर व्यक्ति इस जवाब को सुनकर दंग रह गया|
अगर उस दिन उस भिखारी को उसके हाल पर छोड़ दिया होता तो क्या आज वह इतना अमीर हो पाता? दूसरी बात यह है- इंसान होने के नाते उसने उसपर किये गए एहसानों का कोई बदला चुकाया? वह भिखारी जो आज अमीर के एहसानों के कारण अमीर बन गया क्या उसने कभी सोचा कि यह उपकारी मेरा कौन लगता था कि इसने मुझ पर इतना उपकार किया? अब वह इतना कम percentage देने से भी मुकर रहा है?
काश! भिखारी का विवेक जागृत होता तो वह ऐसी गलती कभी न करता| उपकारी के उपकार को कभी न भूलता, पहले अपने कर्त्तव्य को याद रखता और पैसों के हक़दार न होने की बात न करता और तहे-दिल से अमीर को दुआएं देता, शुक्रिया अदा करता|

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