किसी की भी निंदा करना खतरे से खाली नहीं जिसकी हम निंदा करें उसके दुर्गुण कम होते जाते हैं और वे हमारे अन्दर भरते जाते हैं| अतः हम चाहें तो किसी का गुणगान कर सकते हैं जिससे अगले के पास वे शब्द पहुंचें तो प्रेम ही बढेगा| वाणी का दुरुपयोग मतलब माता सरस्वती का अपमान, जहाँ उनका अपमान मतलब लक्ष्मीजी भी नाराज़| हमें निंदा इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमें उसका अधिकार प्राप्त नहीं है| किसी आम व्यक्ति की निंदा की जाय तो अगले व्यक्ति का दृष्टिकोण तुरंत बदल जाता है, लेकिन वही संतों में इसके विपरीत वे सहनशीलता के साथ उसे सुनते हैं, उसपर मनन करते हैं, और अगर उसमे सच्चाई दिखे तो अपने व्यवहार में सुधार भी करते हैं|
इसी बात पर कुछ महान लोगों की जानकारी देना यहाँ पर उपयुक्त होगा ऐसा मेरा विचार है, क्योंकि उनके उत्तम आचरण से, वे लोग जो उनकी आलोचना कर रहे थे,वे सब नतमस्तक हो गये थे |
गुरजिएफ एक विलक्षण फ़कीर थे| एक बार वे एक गाँव से गुजर रहे थे| ग्रामवासियों के मन में उनके प्रति अच्छी भावनाएँ न थीं, उनके विचार उन्हें पसंद न थे| यही कारण था कि उनको देखते ही सबने गालियाँ देना शुरू कर दिया पर उन्हें बिलकुल भी बुरा न लगा| वे सब गालियाँ देते-देते थक गए परन्तु इन पर कोई असर ही न हुआ, इन्होंने कोई reaction नहीं दिया|
इसके विपरीत ये कहने लगे कि हो सकता है कि आप जो मेरी बुराई निंदा कर रहे हो वह सही हो? वे बोले मैं आश्रम पहुंचकर इस बात पर विचार करूंगा, और कल आकर आपको बताऊंगा|
अगले दिन गाँव पहुंचकर वे बोले कि आपने जो मेरे दुर्गुणों को गिनवाया उनको मैं छोड़ने की पूरी कोशिश करूंगा|
दूसरा उदाहरण ईसा मसीह का है –जब वे किसी गाँव से होकर निकले तो लोग तरह-तरह की गालियाँ देने लगे| ईसा मसीह तुरंत ईश्वर से प्रार्थना करने लगे –हे प्रभु! इन सब का भला करो| इसपर एक ग्रामवासी ने पूछा —आप यह क्या कर रहे हैं? गालियों के बदले में इन दुर्जनों के लिए प्रभु से प्रार्थना कर रहे हैं? ईसा मसीह ने जवाब दिया कि मेरे पास में जो होगा वही तो मैं दे पाऊंगा!
तीसरा उदाहरण—रोज़ा लक्ज़ेब्र नाम के एक जर्मनी के महान विचारक थे, किसी ने इनके विरुद्ध कुछ बातें समाचार पत्र में छपवा दीं| रोज़ा के मित्रों ने उन्हें सलाह दी कि जिन लोगों ने भी गलत बातें आपके विरुद्ध छापी हैं, आप उनका खंडन क्यों नहीं करते? उनने जवाब दिया कि मेरे पिताजी ने एक बार कहा था कि जो दूसरों के दोषों की ओर इशारा करते हैं तो उनकी एक उंगली दोषी की ओर होती है तो तीन उंगलियाँ अपनी खुद की ओर होती हैं| इसका तात्पर्य यह हुआ कि उसने अगले की एक गलती बताकर खुद की तीन गलतियां स्वीकार कीं|
कबीर दस जी भी कहते हैं कि निंदा करने वाले को अपने आँगन में झोपडी बनाकर रखो| जो बोना पानी और साबुन के ही आपके स्वभाव को निर्मल कर देगा|
यही कारण है कि हमें हमेशा दूसरों की बुराई करने से बचना है अन्यथा उसके सारे दोष हम पर ही लद जायेंगे|