लक्ष्य

कालेज के दिनों की बात है, मेरे साथ B.Sc. first year में “ आकाश” पढता था| पूरी क्लास में वो सबसे

intelligent था| साथ के लड़के एवं लडकियां उस से कहीं notes मांगते तो कहीं कोई topic explain करने को

कहते| वो तो तीनो main subjects ( Phy., Che., Maths ) का मास्टर ही था| और first year में उसने top भी किया

था| किन्तु जब result के बाद उससे मुलाक़ात हुई तो उसने हम सब से एक चौंका देने वाली बात कही की वह

B.Sc. छोड़ रहा है| हम सब ने सोचा की शायद वो engineering करेगा पर वो बोला मैं B.A. join कर रहा हूँ| हम

सब दोस्त हैरान रह गए कि ये topper पागल हो गया है| हम दोस्तों ने उसे बहुत समझाया कि तुम कुछ चेंज

करना ही चाहते तो engineering कर लो पर ये B.A. ? | उस समय ऐसा चेंज करना आसान था क्यों कि

engineering के लिए entrance exam नहीं होते थे| केवल marks के base पर ही admission मिलता था| पर वो

माना नहीं और बोला की यार मै IAS बनना चाहता हूँ इस के लिए B.Sc. या engineering ही जरुरी नहीं है| और

अक्सर लोग तो IAS के exam में arts के subjects पढ़ कर exam देते हैं| फिर यदि यही करना है तो B.Sc. या

engineering की बजाय वो सारी मेहनत B.A. और M.A. में लगा कर IAS भी top करूँ| उसके निर्णय से हम में

से कोई भी सहमत नहीं थे| खैर ! और मैंने B.Sc. पूरी की पर हम लोगों का मिलना – जुलना होता रहता था क्यों

कि मै भी यह देखना चाहता था की आखिर ये पागल क्या करेगा ?| मेरी B.Sc. पूरी होते ही मुझे Central Govt. की

job मिल गयी और लगभग 5 वर्ष हो गये साथ ही मै बहुत खुश भी था| मेरा पागल दोस्त भी IAS बन गया

लेकिन उसकी योजनाबद्ध कामयाबी ने मेरे दिमाग के सारे पर्दे खोल दिए कि पागल वो नहीं मै ही था| बल्कि

मै ही क्यों मेरे सारे दोस्त भी पागल थे |

वास्तव में मैंने B.Sc. इसलिए किया था क्योकि मेरे पांच दोस्त B.Sc. ही करना चाहते थे और उनके माँ –

पिता भी यही चाहते थे| लेकिन मेरे पापा ने मुझ से कहा कि बेटा जो चाहो वो पढो पर अच्छे नंबर लाना| उन्होंने

मुझ पर कुछ भी थोपा नहीं | पर चूँकि मेरे पांच दोस्त जो कर रहे थे मुझे भी वही करना था| उन पांच में से दो

दोस्तों ने M.Sc. किया और स्कूल में lecturer बन गए| एक अपने पापा के बिजनेस में लग गया और दो दोस्तों

ने B.Ed. करके स्कूल teacher बन गए|

आज हर दिन इस बात का पछतावा होता है कि मैने व्यर्थ ही दूसरों के निर्णय को अपने ऊपर थोप लिया

जबकि मुझे कुछ भी पढने की छूट थी|आज मै महसूस करता हूँ कि क्या फर्क था मुझ में और आकाश में ! उसकी

निर्णयात्मक क्षमता कितनी विलक्षण थी| उसने अपने भविष्य का कितना सुन्दर और सटीक plan बनाया और उसे

निर्धारित समय पर पूरा किया| और हम ऐसे थे कि अपनी कोई सोच ही नहीं| B.Sc. के ज़माने में भी जब भी कोई

पूछता कि आगे का क्या plan है? तो मै यही कहता की “ अभी तो कुछ सोचा नहीं! देखेंगे”| मेरे अनिर्णय एवं

दिशाहीन श्रम ने आज मुझे एक छोटे rank पर काम करने के लिए मजबूर कर दिया जिससे कम salary में काम

चलाना, एक अस्तित्वहीन सी जिन्दगी ! हाय ! समय भी हाथ से चला गया|

अब मुझे ये बात समझ में आ भी गयी तो क्या हुआ? कि अपने भविष्य निर्माण का plan व्यक्तिगत

और ठोस हो| “भेड़िया धसान” वाली चाल से तो कुएं में ही गिरेंगे| “भेड़िया धसान” का अर्थ है कि – जब भेड़ो का

झुण्ड चलता है तो यदि पहला भेड़ कुए में गिर गया तो एक के बाद एक सारे भेड़ कुए में गिर जाते हैं| अतः जीवन

में यह आवश्यक है कि भविष्य निर्माण का plan ठीक समय पर हो एवं व्यक्तिगत हो साथ ही हमारा श्रम

दिशाहीन न हो| जीवन में सफलता मात्र अधिक धन कामना नहीं है | एक ऐसा प्रयास हो कि हमें धन के साथ –

साथ एक गौरवशाली पद एवं मान – प्रतिष्ठा भी प्राप्त हो सके| हम भावी पीढी के लिए ऐसे पद चिन्ह छोड़ जायें

जिस पर चलने वाला एक सफल व्यक्ति हो सके| अतः यह याद रहे कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए लिए जाने वाला

निर्णय समय सीमा में हो| यदि समय निकल गया तो जीवन के सारे सपने बिखर जाते हैं केवल पछतावा ही रहा

जाता है|

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