किस्मत का खेल

एक दिन शाम को मैं अपने घर के आस-पास के कुछ छोटे- छोटे बच्चों के साथ बैठी हुई थी, मैंने कहा कि सभी एक –एक कहानी सुनायेंगे| सभी बच्चों ने कहानी तो सुनायी,परन्तु वे संतुष्ट न हो पाए और इस प्रकार से कहने लगे please अब एक कहानी हमें आपसे भी सुननी है| तो मैंने उन्हें ये कहानी सुनाई|
एक राजा था, जो अपने दान के लिए प्रसिद्ध था| दान लेने के लिए कई लोग आते थे परन्तु विचित्र बात यह है कि कुछ लोगों का अपना अलग ही प्रभाव पड़ता है, वह इसलिए कि उनका अंदाज़ निराला होता है| ऐसा ही उन मांगने वालों की भीड़ में दो व्यक्ति ऐसे थे जो हर दिन राजा की निगाह में रहते थे| एक था मोहन और दूसरा सोहन| भीख लेने के बाद मोहन राजा को सराहता तो, सोहन अपनी किस्मत को| इस बात से राजा बड़ा ही खिन्न था कि सोहन लेता तो भीख मुझसे और सराहता अपनी किस्मत को| वह मोहन को ज्यादा चाहने लगा क्योंकि वह राजा की जय जयकार करता था|
राजा ने तरकीब निकाली जिससे मोहन की गरीबी दूर हो जाये| सोहन और मोहन जिस राह से जाते थे उस रास्ते को एकदम साफ़ करवा दिया| रास्ते में चांदी के सिक्कों से भरी एक थैली रखवा दी| पहले मोहन को भेज दिया कि तुम पहले चले जाओ| इतनी बढ़िया साफ़ सुथरी सड़क को देखकर वह इतना प्रसन्न था कि अपनी धुन में उछलते कूदते गाते हुए निकल गया| कुछ समय बाद राजा ने उसी रास्ते सोहन को भेजा ,वह बड़ी शान्ति से ध्यानपूर्वक राह पर चल रहा था, तो उसे वह चांदी के सिक्कों वाली थैली मिल गयी| राजा ने दूसरे दिन बड़ी आशा के साथ मोहन से पूछा –राह में तुम्हें क्या मिला? उसने कहा कुछ भी नहीं| फिर सोहन से पूछा, – उसने कहा मेरी किस्मत बड़ी अच्छी रही और मुझे चांदी के सिक्कों से भरी थैली मिली|
अब राजा ने दूसरे दिन मोहन को एक तरबूज दिया और सोहन को कुछ रुपये|
मोहन ने सोचा कि इस तरबूज का मैं क्या करूंगा? मैं इसे इस आम के फल वाले को ही बेच देता हूँ, तो पैसे मेरे काम आयेंगे| थोड़ी देर बाद सोहन आया उसके हाथ में पैसे थे, उसने सोचा यह तरबूज बढ़िया लग रहा है लेलेता हूँ|
घर जाकर जब उसे काटा तो क्या देखता है कि उसके अन्दर ढेर सारे gold coins भरे हैं| वह फिर यही कहता है कि वाह रे मेरी किस्मत! अब तो मेरी गरीबी दूर हो गई| अब मुझे भीख नहीं मांगना पड़ेगा|
दूसरे दिन मोहन अकेला पहुंचा राजा के पास| राजा ने पूछा सोहन कहाँ? तो उसने कहा कि अब सोहन को भीख की जरूरत नही, वह अब अमीर हो गया और मैं वहीं का वहीं रह गया|
राजा आश्चर्य चकित हो गया कि यह कैसे हो गया? कि मैंने तो इसे तरबूज दिया था तो, अमीर तो इसे होना चाहिए| फिर यह कैसे हो गया? राजा के द्वारा पूछे जाने पर मोहन ने सारा जो घटित हुआ सुना दिया|
राजा ने कहा विनाश काले विपरीत बुद्धि, अर्थात् बुरे समय में बुद्धि भी उल्टी चलती है|
अब राजा समझ गया कि किसी की प्रशंसा करके हम वह नहीं पा सकते जो हम अपनी किस्मत से पाते हैं|
अच्छे कर्मों से, परोपकार से, सदा ही अच्छी किस्मत बनती है, चापलूसी से नहीं|

Contributor
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *