कर्तव्य

एक शहर में दो भाई थे| दोनों के विचारों में बड़ा अंतर था| एक ने सोच रखा था कि मैं तो गृहस्थी के चक्कर में न पड़ कर,खूब तपस्या करूंगा और बहुत सारी सिद्धियाँ हासिल करूंगा| छोटे भाई का विचार था कि इन सबकी कोई आवश्यकता नहीं है, मैं तो गृहस्थी में ही रहूँगा| बड़े भाई ने किसी महात्मा की शरण ली |उनसे तरह –तरह के मंत्र सीखे| अब उसने खूब जप –तप करके उन मन्त्रों को सिद्ध कर लिया| यह कार्य कोई इतना आसान तो नहीं है| घर- बार छोड़ दिया और इसी कार्य में अपने आपको busy कर लिया |
समय बीतता गया १०-१२ साल बीत गए| इसी time period में छोटे भाई ने शादी कर ली| उसके यहाँ आठ –दस साल के, बड़े सभ्य आज्ञाकारी बेटे भी हो गए| छोटा भाई अच्छी नौकरी करके अपनी गृहस्थी अच्छी तरह निभा रहा था |
एक दिन बड़े भाई को लगा कि मैं अपने छोटे भाई और उसके परिवार को तो देख आऊँ,पता नहीं कैसा है लंबा अरसा बीत गया मिले हुए |
तो अचानक दोनों भाइयों का मिलाप होता है| दोनों ने एक दूसरे से कुशल क्षेम पूछी| छोटे भाई ने बड़े भाई से पूछा कि आपने इतनी कठिन तपस्या से क्या हासिल की ? उसने कहा कि सिद्धियाँ हासिल की| अच्छा तो उससे क्या कर सकते हो? उसने कहा –अभी देखो मैं कैसे अपनी तपस्या की शक्ति से एक गिलास पानी मंगवाता हूँ| उसने अपनी सिद्धियों की मदद से मंगवाकर दिखाया, तो छोटे भाई ने कहा –देखो भैय्या ये तो मैं भी कर सकता हूँ| बड़े भाई ने कहा अच्छा! करके दिखाओ| इस पर छोटे भाई ने कहा देखो –इसने अपने बेटे को आवाज़ लगाई और कहा बेटा –रमेश! एक गिलास पानी लाना| तुरंत पानी आ गया|
इसपर छोटे भाई ने कहा देखो भैय्या ये ही मेरी सिद्धियाँ हैं |
इस कहानी से ये सिद्ध होता है कि हम चाहें तो गृहस्थी में रहकर भी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपने लक्ष्य को पा सकते हैं| हर कार्य योगस्थ होकर अर्थात् अपने इष्ट से जुड़कर करो,तो सब कुछ हासिल कर सकते हो| इतनी कठिन तपस्याओं की,और घर बार छोड़ने की कोई आवश्यकता ही नहीं है|ईमानदारी से ईश्वर द्वारा मिली हुई भूमिका को अच्छे से निभाओ बस|

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