गुणों के पुंज

इस विश्व में पैसों के धनी तो कई मिलेंगे,परन्तु गुणों के धनी को तो ढूंढना पड़ता है क्योंकि,गुणों की कीमत समझकर उनका संचय करने वाले बहुत ही कम मिलते हैं| यदि कहीं धन पड़ा हो तो उसे झट से, उठाते वक़्त किसी की नज़र न पड़े ऐसा सोचकर बटोरनेवाले तो कई मिलेंगे परन्तु इसी प्रकार अच्छे विचारों का संग्रह करने वाले गिने चुने ही होंगे|
इसी बात पर एक दृष्टांत याद आ रहा है—एक महात्माजी थे| उनके कई शिष्य थे| उनमे से एक शिष्य ऐसा था जिसमे अवगुण बहुत थे| एक दिन एक व्यक्ति चुपचाप महात्माजी के पास जाकर बोला –आपके तो सारे शिष्य अच्छे-अच्छे हैं ,बड़े महात्मा हैं,परन्तु अमुक शिष्य तो अवगुणों से भरा हुआ है| लगता है आप उससे कुछ बोलते ही नहीं| उनने कहा- मेरे गुरु ने कहा कि तुम सब में सिर्फ गुण देखो, इसलिए मैं हमेशा सबमे गुण ही देखता हूँ|
कुछ ऐसे महान संत हुए हैं जो अवगुणों को देखने की बात तो दूर ! लोगों के अवगुणों को छिपाते हैं और इतना बड़ा उपकार करके इस बात को प्रकट भी नहीं होने देते हैं |
दिल्ली में जामा मस्जिद है वहां एक मस्त फ़कीर पड़े रहते थे उनका नाम था शर्मदशाह| कभी एक कम्बल ओढ़े रहते तो कभी वह भी नहीं| औरंगजेब जब नमाज़ पढने जाते तो किसी ने शिकायत कर दी कि ये निर्वस्त्र पड़ा रहता है और लोग यहाँ से गुज़रते हैं, और यह नमाज़ पढने भी नहीं जाता| जब उनने कहा कि अपने ऊपर कम्बल तो डाल ले, तो बोलता है कि आप ही डाल दीजिये| उन्होंने जब कम्बल डाला तो कहते हैं कि औरंग ब ने जितने भी पाप किये थे सब उतर गए| मगर क्षमा | कहने लगे फकीरों का यही काम है| अपने निर्वस्त्र पड़े रहते हैं , दूसरों के दोषों को ढकने के लिए |उस पर पर्दा रहे| इसीलिये परमात्मा भी इन्हें माफ़ करता है| भला ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं जो दूसरों के दोषों पर पर्दा डालें !
शायद वह आदमी सोचता हो कि मेरे दोषों को यह नहीं जानता ,परन्तु ऐसे संत – जन जानबूझ कर के भी उसकी तरफ निगाह नहीं डालते|
हमें भी यह कोशिश करनी चाहिए कि यदि किसी में कोई दोष दिखें तो उस सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करें कि इसका कल्याण करो, इसे अच्छे विचार दो,इसको खुश रखो|
ऐसे ऊंचे विचारों को हमें हमारे अन्दर develop करना होगा, जो कि अभ्यास द्वारा ही संभव है|
जो सब के भले के बारे में सोचता है तो वह सर्वशक्तिमान उसके बारे में सोचता है|

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