भटकों की वापसी – संतों की अहेतुकी कृपा

एक कोठे पर दो महिलाएँ अपना व्यापार कर रहीं थीं| उसी कोठे में एक कमरा एक और स्त्री ने ले रखा था, यह जानते हुए कि यहाँ आने वाले सभी पुरुष राह भटके हुए ही होंगे|
बाहर duty देने वाले व्यक्ति से कहा कि मेरे पास हर दिन आप एक ही व्यक्ति को भेजें| शाम को जब कोई व्यक्ति आता तो, उससे कहती कि पहले तो आप स्नान करें| जब स्नान हो जाये तो कहती कि, किसी भी काम को करने के पहले पूजा जरूरी है तो आसन देकर नीचे बिठा देती| पूजा के लिए आँखें बंद करने का कहती , उसे ऐसी समाधि की अवस्था में पहुंचा देती कि उसे अपनी सुध-बुध न रहती, पूरी रात कट जाती और सुबह तक उसकी आत्मा पर आये हुए काम,क्रोध, लोभ मोह रूपी मल-आवरणों को वह स्त्री हटा देती, और उस व्यक्ति को एक विचित्र आनंद की स्थिति में पहुंचा देती| आँखें खोलते ही वह व्यक्ति अपने आपको ऐसी आनंद की स्थिति में पाकर भाव-विभोर होकर, चरण पकड़ लेता और कहता कि आपने मुझे कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया, मैं आपका यह ऋण कैसे चुकाऊँ? इसपर वह कहतीं कि मुझे एक वचन दो कि यह राज, राज ही रहेगा| और वह व्यक्ति एकदम खिले-खिले चहरे के साथ आनंद विभोर स्थिति में अपने घर लौट जाता| इस बात को बाहर ड्यूटी पर स्थित व्यक्ति प्रति दिन observe करता कि यहाँ से निकलने वाले व्यक्ति के चहरे पर एक अनोखी आभा दिखती है क्या बात है? समय बीतता गया| उसने तय किया कि अब तो मैं खुद ही जाकर देखूँगा|
यही बात उसके साथ भी हुई| उसने उस स्त्री को वचन भी दिया कि बात leak न होगी, परन्तु क्या करे! उसे जो आत्म-ज्ञान और शांति मिली उसको वह अपने अन्दर समेट के न रख सका और उस हालत में जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगा — अरे! सभी मेरी बात को ध्यान से सुनो — जिस स्त्री को हम सब गलत समझ रहे थे वह कोई साधारण या बिकाऊ स्त्री नहीं है| वह तो हमारी आतंरिक सफाई करके हमें आनंद धाम में पहुंचाने के लिए यहाँ आयी है| इतने लम्बे समय से यह स्त्री यही काम कर रही है| सभी जल्दी फूलों के हार लेकर आओ इनके चरणों में फूल चढाओ| यह तो साक्षात् माँ है, भटके हुए पुत्रों को सन्मार्ग पर लाने आई है| यह सब सुनकर वह स्त्री बोली— अरे! भावावेश में आकर तूने कितनी बड़ी गल्ती कर दी| अब मुझे ऐसे स्थान पर पहुंचकर लोगों का उद्धार करना है जहां मुझे कोई न जानता हो, और वह महान माँ रूपी संत वहां से चली गई और कहाँ गई यह कोई न जान पाया|

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