अभिमान

एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकते |इसी प्रकार एक साथ खुदा और खुदी भी एक जगह नहीं रह सकते| यह अभिमान हमेशा हमें हमारे ईश्वर से दूर कर देता है| उस तक पहुँचने के दो तरीके हैं| पहला– निरभिमानी बनकर उसके दरबार में, पश्चाताप के आँसू बहाकर पडा रहे, वह उसे अधिक प्यारा है| दूसरा वह जो अपनी तपस्या के बल पर वहां पहुंचना चाहताहो|

इसी बात पर एक दृष्टान्त याद आ रहा है—हज़रत ईसा के जमाने की बात है| एक व्यक्ति था, जिसने आजीवन बड़ी नादानियाँ कीं| कभी भी बुद्धि से काम काम ही न लिया,परिणाम यह हुआ कि बुराइयों के चंगुल में फंसता ही गया|
एक बार हज़रत ईसा जंगल में आये, एक भक्त के निवास स्थान पर रुके, उन्हें वहां देखकर उसकी ऐसी स्थिति हो गई कि वह समझ नहीं पा रहा था,कि क्या करूं? ऐसी स्थिति में वह एकदम उनके चरणों में गिर पड़े और चूमने लगा|
न जाने कहाँ से वह बदनसीब व्यक्ति भी उधर आ पहुंचा, हज़रत ईसा के चेहरे की कान्ति ,तेज , देखकर ठिठक गया| जैसे कि दीपक को देखकर परवाना उससे लिपटना चाहता है, बिलकुल वैसी ही स्थिति उस व्यक्ति की भी हो गई |उसे पता था कि वह तो पापी है| मारे शर्म के सर झुकाकर खड़ा हो गया परन्तु आंसुओं की धार कटती न थी, फिर ईसा की ओर देखने लगा, और अचानक कह दिया—अफ़सोस मैंने सारी जिन्दगी की पूंजी व्यर्थ ही गँवा दी,और अब ऐसे जीना तो व्यर्थ है| ऐ दुनियां के मालिक मेरे गुनाह बख्श दे, ऐ मेरे मददगार! मेरी फरियाद सुन|
इसप्रकार आँखों से निकले पश्चाताप के आंसुओं ने उसके सारे मन के मैल को धो डाला| इतने में वह भक्त जिसके यहाँ ईसा आये थे, वह भी आ पहुंचा, जैसे ही उसकी दृष्टि इस व्यक्ति पर पडी तो आग बबूला हो गया और बोला— इस कमबख्त ने यहाँ भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा? यह मेरी बराबरी कैसे कर सकता है? जिन्दगी भर गुनाह किये, मक्कारी की सब को तकलीफ पहुंचाया और अब सब गुनाह माफ़ हो जाएँ? ये कैसे हो सकता है? यहाँ तो जो जैसा करता हा वैसा ही भरता है| और प्रार्थना करने लगा –या अल्लाह! क़यामत के मैदान में मुझे इसके पास खड़ा न करना| भक्त यह कह ही रहा था कि इतने में आकाशवाणी हुई –“ऐ ईसा! मुझे दोनों की दुआ क़ुबूल है क्या हुआ कि एक विद्वान् है और दूसरा मूर्ख| एक ने अपनी जिन्दगी बड़ी पाक ,साफ़ सुथरी गुजारी,और दूसरे ने गुनाहों में बर्बाद कर, रोता गिडगिडाता और फरियाद तो करता है| नम्रता से जो भी मेरे समक्ष आता है , उसे मैं बख्शीश के दरवाज़े से दूर नहीं रख सकता| मैं उसके गुनाह माफ़ कर चुका हूँ अब उसे स्वर्ग में दाखिल करूंगा | दूसरा भक्त यदि उसे नफरत से देखता है और उसके साथ नहीं रहना चाहता है तो उससे कहो कि क़यामत के दिन शर्म न करे| मैं उस गरीब को स्वर्ग में भेजूंगा और उसे नरक में डालूँगा क्योंकि गुनाहगार का दिल तो दर्द और आंसुओं से पानी पानी हो चुका है, और भक्त तपस्या के अभिमान की पोटली सर पर लादे हुए है | जिस दिन उसने अपने आपको नेकों में शुमार किया, बुरा किया |
भला मेरी खुदाई में खुदी कैसे समा सकती है?
भक्ति का फल वह बेअकल नहीं खा सकता ,जो ईश्वर के साथ अच्छा और इंसान के साथ बुरा व्यवहार करता है |”
ईसा ने भक्त से कहा – तुम दोनों में से मालिक को वह गुनहगार ही प्यारा है, जिसे कम से कम उसका खौफ तो है मालिक के दरबार में अभिमानी नहीं पहुँच सकता है, तुझे अपनी इबादत का अभिमान था|

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