संतुष्टि भाग-2 

 सृष्टि में, मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे कितना ही मिल जाए कभी संतुष्ट नहीं होता| यह बात आश्चर्यजनक परन्तु सत्य है, कभी यह मानने को ही तैयार नहीं है कि वह सुखी है, जबकि उसके पास मकान, धन, वस्त्र सब कुछ है| एक बार भगवान् ने यक्ष को बुलाकर कहा कि तुम मृत्युलोक में जाओ और पता लगाओ कि इस चराचर जगत में थलचर, जलचर, जड़, चेतन में कौन सुखी और दु:खी हैं| इस दशा में भी कौन मुझे चाहता है और कौन नहीं|

यक्ष ने सोचा मुझे वायु का रूप धारण करना होगा जिससे मैं एकदम जल्दी हर जगह पहुँच सकूँगा| सबसे पहले वे धरती के पास गए और पूछा — सभी लोग आपको तरह-तरह से कष्ट पहुँचाते हैं, फिर भी आप सबको अन्न फल आदि देते हो, क्या आपको इस बात से तकलीफ नहीं होती? सभी मुझे माँ कहकर पुकारते हैं, मैं अपनी कर्त्तव्य बखूबी निभा रही हूँ| भगवान की कृपा है कि मुझे सेवा का अवसर दिया|    

अब यक्ष समुद्र के पास गया और पूछा कि तुम इतने चंचल क्यों हो? मैं तो अपने मालिक को देखकर खुशी के गीत गा रहा हूँ, मैं चंचल नहीं हूँ, मैं बहुत ही शांत हूँ और प्रसन्न हूँ और भगवान् को धन्यवाद देता हूँ, यदि मैं शांत होकर समाधि में चला जाऊं तो, मेरे अन्दर छिपे हुए धन राशि को पा सकता हूँ परन्तु, मुझे उतनी देर मेरे प्यारे से बिछोह का महान दुःख होगा|

इसके बाद यक्ष पेड़ पौधों के पास गए और पूछा कि तुम सुखी हो या दुखी? हम तो बहुत खुश हैं ये तो हमें देखकर तुम जान सकते हो| हमारी उपस्तिथि तो पशु, पक्षी, मनुष्य सभी को सुख पहुँचाता है| पत्तियों, फल, फूल सब से लदे हम, हमेशा सब को आनंद देते हैं, यहाँ तक कि पतझड़ में भी हम खुश रहते हैं क्योंकि, यही नई कोपलों को आने का अवकाश देता है|

यक्ष ने जानवरों और पक्षियों के पास जाकर पूछा– आप सुखी हैं या दुखी? सबने कहा हम सुखी हैं, हमें कल की चिंता नहीं, भगवान् पर पूरा भरोसा है| न हमारे पास ज्ञान है न ही दुःख है| हम प्रसन्न हैं, प्रभु को धन्यवाद देते हैं|

अब यक्ष एक धनीमानी व्यक्ति के पास पहुँचे और पूछा — लगता है आप सब प्रकार से प्रसन्न हैं, वह यक्ष से कड़क कर बोला — अरे इस संसार में ऐसा कोई प्राणी है जिसे कोई कष्ट न हो? सारा संसार ही दुखी हैं, आनंद का तो कोई नामो–निशाँ ही नहीं है| राजा-प्रजा, पंडित-मूर्ख सारा चराचर ही दुखी है| क्या तुम किसी और देश से आये हो जहाँ दुःख ही नहीं! वैसे तो बहुत सुना है कि यहाँ हर तरफ ईश्वर ही ईश्वर है और वह आनंद स्वरूप है, फिर हमें आनंद का पता क्यों नहीं चलता? क्या यह संभव है? हम उसी में रहें और उसका हमें आभास ही न हो?

अब यक्ष ऐसे मनुष्य के पास पहुँचा जो देखने में ऐसा लगता था कि वह बेहद दुखी और निर्धन है तो उसने पूछा – ऐसा प्रतीत होता है कि आप बहुत दुखी हैं, न अच्छे वस्त्र, न धन, न मकान ही हैं जिससे जीवन सुखपूर्वक बीते| वह हँसकर यक्ष की ओर देखा और बोला— सुख और आनंद क्या मकानों में रहता है? वह तो और चीज़ है जो अपने अन्दर मिलता है वह तो समता में मिलता है| समता में ही संतुष्टि है, बिना संतुष्टि के सुख के दर्शन कैसे? अपरिग्रह का अंतिम अंग ही समता है, यही संतुष्टि है|

जिस प्रकार परिवार में एक तकलीफ में हो तो सभी दुखी हो जाते हैं, उसी प्रकार यदि हम विश्व को भी समझें और हरेक की तकलीफ का ध्यान सब आपस में रखें तो दुःख कैसा? यह दुःख तो हमारा ही पैदा किया हुआ है|

 यक्ष ने भगवान् को यह रिपोर्ट दी| “संतुष्टि में ही सुख है”

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