स्वयं का आँकलन

पन्ना जिले मे हीरे  की खदानें हैं, वहाँ के एक अत्यंत साधारण  परिस्थिति वाले व्यक्ति ने सरकारी अनुमति लेकर एक स्थान पर खुदाई की । खुदाई में दुर्भाग्यवश कोई हीरा उसे नहीं मिला । किंतु खुदाई में एक बडा सा पत्थर मिला जिसमें गणेश जी जैसी आकृति दिख रही थी, वो उसे उठा लाया और आंगन में तुलसी के पौधे के पास रख दिया । एक दिन एक हीरे का व्यापारी वहां से जा रहा था तो उसकी नज़र उस पत्थर पर पडी। उसने यह जान लिया था कि उसमें बहुत सारे हीरे हैं । वह व्यापारी तत्काल ही उस घर पर गया और उसने उस पत्थर को मांगा । कुछ मोल भाव के बाद वह उसे मात्र पाँच सौ रुपये में ले  आया । उसमें से कई हीरे निकले, जिन्हें तराश कर वह अपने शानदार शोरूम में रखा और करोडपति से अरबपति बन गया। अत: किसी भी वस्तु के मूल्य का आँकलन, स्थान और आँकलनकर्ता के आधार पर होता है । एक भिखारी बाज़ारों में गीत गाता है तो उसे कोई दस रुपये भी नहीं देता । किंतु वही गायक किसी आर्केस्टा में गाये  और  किसी फिल्म के लिये गाये तो प्रत्येक स्थान पर उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन भी भिन्न-भिन्न होगा। किंतु यदि यही गायक अलग-अलग आँकलनकर्ताओं के सामने न जाकर स्वयं ही आँकलन भी करने लगे तो उसे अपने वास्तविक मूल्य का ज्ञान हो ही नहीं पायेगा और जीवन भर अपने आप को दूसरों से कम आँकते हुए निराश और दुखी जीवन  जियेगा । हमारे पूरे  student life  में Exam के द्वारा हमारे ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है । इतनी तैय्यारी के बाद हम किसी भी competitive exam के लिये eligible हो पाते  हैं ।

अक्सर हम ये देखते हैं कि हमें स्वयं ही अपने ज्ञान के मूल्यांकन करने की आदत पड जाती है और अक्सर हम स्वयं को कमजोर ही पाते हैं और इसी कारण engineering , PG, करने वाले कई लोगों को देखा जो किसी निर्माणी में security gate पर दरबान की नौकरी कर रहे हैं तो कोई आफिस में बाबू बन गये और इन पर मात्र दसवीं पास भी हुक्म चलाते हैं। इसका कारण हर बार मजबूरी नहीं है । इसका कारण इन लोगों ने अपने अर्जित ज्ञान का मूल्यांकन स्वयं करके यह निष्कर्श निकाल लिया कि मैं किसी भी competitive exam के लायक नहीं हूँ इसलिये जो नौकरी मिल गयी कर लिया । मेरा ये मत है ऐसा करने वालों ने स्वयं के साथ अन्याय तो किया ही है साथ में उन माता-पिता के साथ भी अन्याय किया है जिन्होंने लोन लेकर, अपने hobbies का हवन करके अपनी संतान को उन्नति के शिखर पर पहुँचने का सपना देखा ।

अत: ध्यान रखें कि हमारी उन्नति से राष्ट्र की भी उन्नति होती है । उन्नति केवल स्वार्थ नहीं है । हमारे talent, बल, शौर्य, पराक्रम और ज्ञान की आवश्यकता जितनी हमें व हमारे परिवार को है उससे अधिक हमारे राष्ट्र को है।

 

Contributor
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *