हमारे घरों में हम अक्सर अपने बड़ों से ये शब्द सुनते ही रहते हैं कि हमारे जीवन में पवित्रता की बड़ी आवश्यकता है| चाहे वह पूजा पाठ में हो चाहे अपने kitchen में ही क्यों न हो| शारीरिक पवित्रता हमें Healthy रखती है| परन्तु होता यह है कि मनुष्य इस बाहरी स्वच्छता में इतना तल्लीन हो जाता है कि वह मानसिक स्वच्छता की अहमियत को भूल ही जाता है |
दूसरी पवित्रता sense organs ( ज्ञानेन्द्रियों) की है| हमारे sense organs हमें देखने,सुनने,सूंघने,चखने,स्पर्श में मदद करते हैं और उनका राजा मन है, इन सभी की पवित्रता जरूरी है| हृदय की पवित्रता तो परमावश्यक है क्योंकि मन भी हृदय में ही रहता है|
एक वैज्ञानिक था उसे एक बात बिलकुल समझ मे नहीं आ रही थी कि मैं सब सुख सुविधाओं के होते हुए भी क्यों संतुष्ट नहीं हूँ| मेरे पाँचों sences तो सुखी हैं| उसने महात्मा गौतम बुद्ध की एक book पढी| जिससे पता चला कि कुछ elements ऐसे भी हैं जिनका ज्ञान five sence organs नहीं ले सकती हैं| वे अति सूक्ष्म हैं, उनका ज्ञान हमारी special sence organs ही ले सकती हैं वे हैं—मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार| इन सबकी पवित्रता भी जरूरी है परन्तु इनमे से अहंकार को दूर करना सबसे कठिन है| इसके लिए यह आवश्यक है कि गृहस्थी के सारे कार्यों को करते हुए भी यह भार सम्हालने वाला मैं नही हूँ, यह सोचकर, मालिक को सौंप दें , ऐसे में मन बड़ा हल्का रहता है | यदि लगन से और नियम से इन special sences को पवित्र किया जाय तो सरलता से और जल्दी से उस संतुष्टि को पाया जा सकेगा | जीवन को पवित्र बनाने के लिए जिस प्रकार यमुना,गंगा में मिल गई अपना अस्तित्व ही मिटा दी और गंगा ही हो गई|
इसी प्रकार सारे प्रयत्नों के बाद भी हल्की सी अपवित्रता यदि रह जाए तो उसे भी किसी महापुरुष से मिलकर (अहंकार/मेरापन) दूर किया जा सकता है | क्योंकि यही सबसे बड़ी अपवित्रता है,इसके हटते ही पूर्ण संतुष्टि मिलेगी
महात्मा बुद्ध से मिलकर अंगुलिमाल जैसा डाकू भी उनका ही होकर रह गया| वाल्मीकि डाकू से महर्षि बनकर रामायण की रचना कर दी | हमें ऐसे सत्पुरुषों से मिलना है जिनके हृदय से मेरापन निकल चुका हो| वही सही परमेश्वर के रूप हैं|
जिस प्रकार यमुना ने किया था वैसे ही हमें भी पूर्ण पवित्र होने के लिए ,किसी सत्पुरुष (महात्मा बुद्ध जैसों की ) की शरण में जाना होगा|
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