हर पल परीक्षा

हमारे जीवन में परीक्षा का सिलसिला हमेशा जारी रहता है| चाहे कोई इसे चाहे या न चाहे| परीक्षा के नाम से nervous हो जाये, या boldly बिना किसी डर के ही exam दे आयें| ये तो हम सब जानते ही हैं, इस संसार में मान प्रतिष्ठा के साथ जीने के लिए,ये degree ये परीक्षाएं अत्यावश्यक हैं| इनमे उत्तीर्ण होने के लिए अपने subject knowledge के अलावा सकारात्मक विचारों की, धैर्य की और,शांत मन की आवश्यकता होती है|
हम देखते हैं कि इन परीक्षाओं के अलावा भी हर पल , हर क्षण, इस सृष्टि में जितनी भी वस्तुएं हैं, प्राणी हैं, वनस्पति हैं, या मनुष्य हर एक की परीक्षा चलती ही रहती है|
जैसे हम किसी mall में गए, कुछ देर कहीं बैठ गए किसी की ओर हमारी निगाहें जाती हैं, उस व्यक्ति विशेष से हमें कुछ भी लेना-देना नहीं है, न ही हम उसे जानते ही हैं| फिर भी मन ही मन कुछ –कुछ परीक्षा लेते ही रहते हैं|
अब हम यदि सोचें, यदि सांसारिक मार्ग में ही इतनी परीक्षाएं हैं तो क्या पारमार्थिक मार्ग पर पल-पल परीक्षाएं नहीं होंगी? वो तो निश्चित रूप से होंगी ही|
जैसे कोई कहे कि मैं सत्य वादी हूँ , मैं बहुत शान्ति में जीता हूँ, मैं क्रोध को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता हूँ वगैरह-वगैरह| बराबर विषम परिस्थितियाँ बनती हैं, और आपको अपने-आप को prove करना होता है, कि आप सफल रहे इस परीक्षा में |
इसी बात पर एक दृष्टांत याद आ रहा है—एक महात्माजी थे श्रीमद् भागवत की कथा कहते थे| कथा में प्रेम रस भी था व ज्ञान की सुगंधि भी रहती थी| लोग बहुत प्रभावित थे, इसलिए विशाल जन समुदाय इकठ्ठा होता था, उनके प्रवचन सुनने के लिए|
एक व्यक्ति थे, जो बिना छुट्टी किये लगातार प्रवचन सुनने जाते थे| ये बात उनकी पत्नी को बिलकुल अच्छा नहीं लगता था| एक दिन वह सोचने लगी कि मैं ऐसा कुछ करूं जिससे इनका वहां जाना बंद हो जाये|
एक दिन उस औरत ने एक दूसरी स्त्री को ऐसे तैयार किया जैसे वह गर्भवती हो, और उसे महात्माजी को बदनाम करने की नीयत से भेजा| उसने यह सोचा कि कथा वाचक बदनाम हो जायेंगे, कलंकित हो जायेंगे तो, उसके पति भी कथा में जाना बंद कर देंगे|
वह स्त्री घूंघट काढ़कर आयी और रो-रो कर कहने लगी कि आपने मुझे त्याग दिया, मैं दो-चार दिन में ही माँ बनने वाली हूँ| अब भला कहाँ जाऊँ ? सभी श्रोता आश्चर्य चकित हो गए, कथा रुक गई|कथा वाचक ने प्रेम से कहा—माँ! तू इतने दिन तक कहाँ थी? आपने बड़ी कृपा की जो यहाँ आ गयीं| आप यहीं रुकें मैं आपकी पूरी सेवा करूंगा | माँ की सेवा पुत्र न करे तो कौन करेगा? महात्माजी के उच्च भावों को जानकार उस स्त्री को बड़ा ही पश्चाताप हुआ, और उसने सारा रहस्य सबके समक्ष प्रकट कर दिया| लोग उत्तेजित हो गए परन्तु , शांत संत ने सबको शांत कर दिया|
ऐसी कठिन परीक्षाएं साधकों के जीवन में होती ही रहती हैं, इन सबको पार कर उसे आगे बढ़ना है, और संत बनना है ,जिसके रक्षक(गुरु) सर्वशक्तिमान होते हैं वे अपने धैर्य और जाग्रत विवेक के कारण परीक्षा में pass हो जाते हैं| इस तरह की विभिन्न (काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहम् आदि की) परीक्षाएं आजीवन चलती ही रहेंगी|

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