किसी व्यक्ति के रूप-रंग, उसके बाहरी शरीर को देखकर ही नहीं बता सकते कि अमुक व्यक्ति कितना ज्ञानी है अथवा अज्ञानी| किसी का post ओहदा देखकर हम यह नहीं तय कर सकते हैं कि वह आत्मिक रूप से कितना उन्नत है| जैसा कि आप सब इस पर आधारित कथा से तो परिचित ही हैं पर फिर भी मैं आपको कुछ बताना चाहूँगी| इस पर मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है —एक बार महाराजा जनक ने यह मुनादी कराई कि जो भी उनको आधे मिनिट में ईश्वर दर्शन करा देगा उसको वह आधा राज्य देंगे| जो न करा पाएगा उसे जेल की सजा भुगतनी पड़ेगी| कई ऋषि आये पर न कर पाए, और उन्हें सजा भी भुगतनी पड़ी| अंत में एक बालक आया,जो ऋषि पुत्र था,और पूर्ण भी था| जैसे ही वह सभा में आए तो सभी लोग अष्टावक्र जी पर हँस पड़े और वे खुद भी हंस पड़े, तो राजा ने पूछा कि ये लोग तो आप पर हँस रहे हैं पर आप क्यों हंस रहे हैं?अष्टावक्र जी बोले कि मैने सुना था कि आपकी सभा में सब विद्वान् और पहुंचे हुए लोग हैं
लेकिन इनकी नज़र तो मेरे बाहरी रूप तक ही अर्थात् बाह्य शरीर तक ही सीमित है| ये लोग मेरे अंतर में क्या है इसको नहीं देख पा रहे हैं| तात्पर्य ये मेरे अन्दर छुपी हुई शक्तियों को नहीं देख पा रहे हैं, इसलिए मैं हँस रहा हूँ| राजा समझ गए कि ये संस्कारी पुरुष है|
राजा ने उन्हें आसन दिया और कहा कि अपना कार्य आरम्भ करें| अष्टावक्रजी बोले राजा! इतने बड़े कार्य के लिए ये कीमत बहुत कम है, तो राजा बोले तो पूरा राज्य ले लें| राजा ने संकल्प लेकर पूरा राज्य दे दिया| अब उन्होंने गुरु दक्षिणा मांगी| राजा ने मंत्री को बुलाया और कहा इन्हें दक्षिणा देदो| अष्टावक्र जी बोले-तुम तो अपना सारा राज्य ही मुझे दे चुके हो ये सब अब मेरा है| इसपर राजा ने पूछा कि अब मेरे पास ऐसा क्या है जिसे मैं आपको दे सकूं, वे बोले तुम्हारा मन दे दो| फिर राजा ने अपना मन भी संकल्प करके दे दिया| ऋषि मुस्कुराकर बोले अब तो मन भी तुमने मुझे दे दिया, अब सोचोगे कैसे? मन उपयोग करना बंद करो| दोनों ही शांत होकर बैठ गए, और अष्टावक्र जी ने अपनी आत्म शक्ति से वह कार्य संपन्न किया|
इसके बाद राजा वहां से उठकर जाने लगे, तो उन्होंने कहा कि आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, अब यह राज्य मेरा है मैं जैसा कहूं वैसा ही करो| इस दृष्टान्त से यह सिद्ध हो गया कि अष्टावक्र जी देखने में भले ही कैसे ही दिखते हों परन्तु, उन सब लोगों से ऊंची स्थिति में थे, जो सभा में बैठे थे|