क्या इनके उपकारों से मुक्त हो सकते हैं?

माता-पिता और गुरु ये तीनों ऐसे हैं जिनके उपकारों  से हम कभी मुक्त  नहीं हो सकते| अक्सर हम देखते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी के लिए कुछ करता  है तो पहले यह सोचता है कि इस काम के करने से मुझे क्या मिलेगा? परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि ये तीनों ही ऐसे हैं जो कभी भी अपने बच्चों ,शिष्यों के लिए करके, यह नहीं सोचते हैं कि इतनी सेवा इनके लिए क्यों करूं? या अपना पूरा ज्ञान इसमें क्यों उड़ेल दूँ| क्या इस प्रकार सोचने वाला कोई और हो सकता है? कदापि नहीं|

ऐसा होने के बावजूद भी यदि कोई बच्चे बुढापे में अपने माता-पिता  का ध्यान न रखें

या अपने गुरु से ही सब कुछ पाकर उसे ही अपनेसे  कम दिखाने की कोशिश करें तो

ऐसे कृतघ्न (ungrateful) को  क्या परमात्मा भी माफ़  करेगा? असंभव|

इसी बात पर एक कथा याद आ रही है|

काशी में गुत्तिल कुमार नाम के,  गन्धर्व विद्या के एक आचार्य थे, जिन्हें संगीत में सिद्धि प्राप्त थी| ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया व अंधे माता-पिता की आजीवन सेवा की, अविवाहित रहे| जो इस प्रकार पितृ यज्ञ को पूर्ण कर माता-पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर ले उसके लिए इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं| काशी के विद्वानों ने उन्हें बोधिसत्व की उपाधि दी थी| उन दिनों वहां के राजा ब्रह्मदत्त थे, जिन्होंने इन्हें अपना आचार्य बना लिया |

एक बार काशी के कुछ व्यापारी उज्जैन आये, उनने वहां के प्रसिद्ध वीणाकार मूसिल को बुलवाया| उसकी वीणा सुनने के बाद उनके चेहरों पर कोई खुशी के भाव न देख,

मूसिल ने कहा-  लगता है आप मूर्ख हो, गुणग्राही नहीं| वे बोले अरे! तुम्हें तो कुछ आता ही नहीं| मूसिल ने कहा आप किसी अच्छे वीणावादक  को जानते हों तो मुझे उसके पास ले चलिए यही मेरी fee है| व्यापारियों ने आचार्य का घर दिखा दिया|

आचार्य ने मूसिल को देखते ही पहिचान लिया था कि यह कोई अच्छा  इंसान नहीं है, तो उनने सिखाने से इनकार कर दिया| परन्तु आचार्य के माता –पिता की  सिफारिश के कारण  आचार्य को उसे सिखाना पड़ा|

गुरु ने, बिना कुछ छिपाए, अपना सारा ज्ञान उसमे उड़ेल दिया|

मूसल ने request  की कि  मुझे भी राजदरबार में काम दिलवाइए| राजा ने कहा कि इसे हम आप से कम तनख्वाह देंगे| इस बात पर वह अपने ही गुरु से लड़ पड़ा कि जब आपको जितना ज्ञान है उतना ही मुझमे है तो salary कम क्यों? राजा से कहकर हम भरी सभा में competition रखवादें तो राजा को पता चल जायेगा कि  कौन ज्यादा जानता है |

आचार्यजी बड़े चिंतित थे कि  मैं बूढा हो गया हूँ, वह जवान है, वह जीत गया तो मेरी बेइज्जती हो जायेगी|

राजा ने मूसिल को बुलाकर समझाया — शिष्य को गुरु की बराबरी का दम नहीं भरना चाहिए| गुरु –गुरु ही है और शिष्य –शिष्य ही है| तुझे आचार्य की बराबरी का दावा करना उचित नहीं है| तू ऐसा मत कर, इसमें तू  सफल नहीं हो सकता |

समझाने पर भी न मानने पर, सातवें दिन प्रतियोगिता रखी गई|

आचार्य बोधिसत्व सच्चे भक्त थे |भगवान अपने भक्तों की विपदा सहन नहीं कर सकते, भक्तों की रक्षा करना उनका प्रण है| भगवान् ने इंद्रदेव को भेजा ,वे बोले – मैं वहां गुप्त रूप से पहुंचूंगा और सिर्फ तुम्हें दिखूंगा , मेरे इशारों को follow करते जाना, बस! जीत तुम्हारी निश्चित है|  आचार्य ने एक-एक कर वीणा के  चारों  तार तोड़ दिए तो मूसल को भी तोड़ने पड़े | मूसल  की वीणा के स्वर बेसुरे होगये परन्तु आचार्य की वीणा के मधुर!  और मूसल  हार गया|

राजा ने आज्ञा  दी कि इस ungrateful (कृतघ्न)  को मार-पीटकर फ़ेंक दो| आचार्य को सम्मानित किया गया|     

Contributor
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *