उपासना और उपवास ये दो शब्द हैं,परन्तु हम अक्सर उपवास को और short करके उपास बोल देते हैं जो कि उपवास शब्द का अपभ्रंश है| जैसे— अरे! आज सावन सोमवार है न! मेरा उपास है| हम संसार में रहते हैं, और हर वक़्त हम यहीं के विचारों में डूबे रहते हैं, परन्तु कोई भी व्यक्ति जितने भी वक़्त उस सर्वशक्तिमान के विचारों में रहता है तो वही उपासना कहलाती है| उप means पास और आसन रहना| यह संसार हमारे मन में इस तरह बस गया है कि एक क्षण को भी हटा नहीं सकते| परन्तु जब हम संसार के स्थान पर, उस ईश्वर को (जिसे हम जिस किसी भी नाम से पुकारें) हमारे अन्दर बसा लें तो यही उपासना है|
उपासना में इष्ट और उपासना करनेवाला उपासक (शिष्य) मिलते हैं| जब उपासक अपने मन को जो अनेक विकारों से दूषित था, अपने इष्ट के उस महान पवित्र चित्त में मिला देता है, तब वह पवित्र और शुद्ध होने लगता है|
हम गंगा किनारे खड़े होकर अगर देखें तो हम देखते हैं कि शहर का गंदा पानी एक बड़े नाले में होकर गंगा में गिर रहा है| वह बड़ा गन्दा है, दुर्गन्ध युक्त है, परन्तु गिरते ही वह उस पवित्र धार में मिला, कुछ दूर साथ-साथ चला, कि आगे उसका रूप स्वच्छ होने लगा| कुछ दूर और साथ चलने पर,पानी बिलकुल निर्मल, गंगा जल ही हो गया| यही क्रिया उपासना की है कुछ समय तक सत्पुरुषों की समीपता करने पर हृदय शुद्ध हो जायेगा, अनंत ज्ञान का स्रोत फूट निकलेगा| जहां असीम पवित्रता होगी वहां गन्दगी कैसे बचेगी? गंगा की धारा और संतों में एक ही अंतर है वह यह कि गंगा अपने स्थान को त्यागती नहीं जबकि संत अनेक दुखियों के घरों में कुछ क्षण निवास कर उनके तापों को दूर कर जाते हैं|
इसी पर एक वृत्तान्त है— एक लंगड़ा अपाहिज व्यक्ति था, मजबूर था, चल-फिर नहीं सकता था, एक शहर में रहता था| उसे खबर मिली कि वहां से पांच मील दूर एक महात्माजी रहते हैं, वे ईश्वर स्वरूप हैं, उनके दर्शन मात्र से ही कल्याण होता है| उसकी उनसे मिलने की इच्छा हुई,पर बेचारा जाये तो कैसे? बार-बार हृदय से प्रार्थना करता और एक बार तो जो परिचित दर्शन के लिए जा रहे थे उनके द्वारा अपनी प्रार्थना पहुंचादी कि एक अपाहिज आपके दर्शन को व्याकुल है| उनने कहा कि मैंने नगर में न जाने का प्रण लेलिया सो न जा पाऊँगा| वह बेचारा रोने लगा|
एक दिन महात्माजी अपनी कुटी के पास घूम रहे थे कि उन्हें एक बहुत सुन्दर, एकदम सफ़ेद घोडा घास चरता हुआ दिखा| उसपर हाथ फेरते ही वह खुश हो गया, बस उसपर सवार हो गए| घोडा एकदम सरपट भागने लगा, और थोड़ी देर में सीधे उस लंगड़े फकीर के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया| लंगड़े ने महात्मा को पहचान लिया, उनके चरणों में प्रणाम किया| वे कुछ समय उसके पास बैठे, और जब चलने को हुए तो बोले अब फिर ऐसा न करना| वह बोला भला मैं कैसे आपको बुला सकता हूँ? मुझमे इतनी शक्ति कहाँ ? नहीं –नहीं तुममे वह अपार शक्ति है कि, तुम चाहो तो मुझ जैसों को क्षण में बुला सकते हो| तुम उस सर्वा शक्तिमान से मिल चुके हो|
तुम जानते हो, ऐसा क्यो? इसका कारण केवल उपासना ही है| जब जीव अहंकार को त्याग कर उस महान प्रभु के चरणों में अपने आपको समर्पित करता है तो उसी क्षण अपार शक्ति उसमे प्रवेश कर जाती है और पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करता है|